इक मुसलसल सफ़र में रहता हूँ

इक मुसलसल सफ़र में रहता हूँ ये मैं किसके असर में रहता हूँ मुझको ये बेख़ुदी कहाँ लाई अब मैं सबकी नज़र में रहता हूँ जब भी सोचूँ मैं कुछ तुझे लेकर एक अनजाने डर में रहता हूँ देवता होता तो निकल पाता आदमी हूँ, भँवर में रहता हूँ घर की दुनिया से कुछ नहीं अच्छा घर से बाहर भी घर में रहता हूँ © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी