किसी ने उंगलियाँ रख दीं

मिलन के पल जो आए तो बहुत-सी दूरियाँ रख दीं उजाले मांगे तो तक़दीर में तारीक़ियाँ रख दीं कभी जब भी मेरा ये मन हुआ ख़ामोशियाँ तोड़ूँ मेरे होठों पे आकर के किसी ने उंगलियाँ रख दीं © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी