कैसे फ़क़ीर हो तुम
पैसे के पीर हो तुम
रखकर ज़मीर गिरवी
बनते अमीर हो तुम
जो दिल में चुभ रहा है
इक ऐसा तीर हो तुम
आगे न बढ़ सकी जो
ऐसी लकीर हो तुम
कविता में सौदेबाजी
कैसे कबीर हो तुम
© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता
कैसे फ़क़ीर हो तुम
पैसे के पीर हो तुम
रखकर ज़मीर गिरवी
बनते अमीर हो तुम
जो दिल में चुभ रहा है
इक ऐसा तीर हो तुम
आगे न बढ़ सकी जो
ऐसी लकीर हो तुम
कविता में सौदेबाजी
कैसे कबीर हो तुम
© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता