मैंने केवल गीत लिखे हैं

चाहे आखर बोकर पीर उगाने का आरोप लगा लो
दुनियावालों! सच पूछो तो मैंने केवल गीत लिखे हैं

जब-जब दो भीगे नैनों से काजल का अलगाव हुआ है
तब-तब मेरे ही शब्दों से तो पीड़ा का स्राव हुआ है
विष बुझते शूलों से जब-जब संकल्पों के धीरज हारे
तब-तब मेरे ही आंसू ने अरुणाए दो चरण पखारे

चाहे मुस्कानों पर मेरा कोई छन्द न सध पाया हो
मैंने आंसू अक्षर करके, पागल-पागल गीत लिखे हैं

कलम बनाकर कंधा मैंने रोते जीवन को बहलाया
अंधियारे की बांह मरोड़ी तब जाकर सूरज मुस्काया
पीड़ा को ही कंठ बनाया, लेखन एक चुनौती जानी
मेघों की अलकें टूटी हैं तब धरती पर बरसा पानी

चाहे मेरे तन से कोई उत्सव अंग न लग पाया हो
मैंने मन की हर खुरचन से विह्वल-विह्वल गीत लिखे हैं

मैंने गीत लिखें हैं, जब-जब मन के बिना समर्पण देखा
दरपन-दरपन पानी देखा, फिर पानी में दरपन देखा
मैंने गीत लिखें हैं, जब-जब दो आंखों के ख़्वाब मरे हैं
मैंने गीत लिखें हैं, जब-जब झंझावत से दीप डरे हैं

चाहे फूलों की बगिया में मेरा कुछ अनुदान नहीं है
मैंने स्याही गन्ध बनाकर आँचल-आँचल गीत लिखे हैं

© Manisha Shukla : मनीषा शुक्ला