कठपुतली
गुस्से से उबली
बोली- ये धागे
क्यों हैं मेरे पीछे-आगे?
इन्हें तोड़ दो
मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो
सुनकर बोलीं
और-और कठपुतलियाँ
कि हाँ
बहुत दिन हुए
हमें
अपने मन के छंद छुए
मगर…
पहली कठपुतली सोचने लगी-
यह कैसी इच्छा
मेरे मन में जगी
© Bhawani Prasad Mishra : भवानी प्रसाद मिश्र