प्रण

जन्मदाती धात्रि! तुझसे उऋण अब होना मुझे
कौन मेरे प्राण रहते देख सकता है तुझे
मैं रहूँ चाहे जहाँ, हूँ किन्तु तेरा ही सदा
फिर भला कैसे न रक्खूँ ध्यान तेरा सर्वदा

Maithili Sharan Gupt : मैथिलीशरण गुप्त