नींद न आयी

सुधियाँ रहीं सताती नींद न आयी रत्ती भर। अम्मा अपने साथ ले गयीं तुलसी,तुलसी चौरा, आले में जाले के पीछे लुढ़का पड़ा सिंधौरा, छ्त पर गुड़ धनिया पाने को आते हैं बंदर। एकादशी प्रदोष अमावस सब के सब छूटे, पंच पात्र आचमनी तांबे के लोटे फूटे, लक्ष्मण रेखा नहीं रसोई सब बाहर भीतर । दिन बासंती साथ ले गयीं अब न रही वह बात, कभी जेठ की दुपहर जीवन कभी पूस की रात, बंधे सनीचर पैरों में भटकाते इधर उधर । © Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल