यो-यो

गलियारे में खेल रहे
उछल-कूद करते
लड़ते-भिड़ते
बच्चे ही तो हैं हम

अनागत की भाँप कर परछाई
भौचक
सहम जाते हैं

दौड़ पड़ते हैं
मुँह छिपाने को
अतीत की गोद में
करते हैं स्मृतियों का स्तनपान
चेहरे और चेहरे और चेहरे
घटनाएँ, दुर्घटनाएँ
बोल….
अघा कर
फिर उतर आते हैं सड़क पर
फिर वही
सिर पर मण्डराते
अनागत के साए
फिर वही
अतीत की गोद में लुक-छिप रहना
और जाएँ भी कहाँ?

© Jagdish Savita : जगदीश सविता