परोक्ष

आख़िरी पड़ाव तक हम थे तुम्हारे साथ हमीं ने लगाए थे खेमे अन्तिम चरण की पूर्व संध्या को जहाँ किया था विश्राम तुमने अगले दिन होकर लैस चल पड़े थे तुम चोटी फतह करने हम रह गए थे पीछे तुम्हारी सफलता की दुआ मांगते! दुआ क़बूल हुई उत्तुंग शिखर पर पहुँचे तुम फहरा दी वहाँ पताका रच दिया इतिहास और हम? हम तुम्हें सकुशल वापस ले आए ताकि तुम पर, फ़क़त तुम पर कर सके गर्व दुनिया! © Jagdish Savita : जगदीश सविता