रहबरी रह जाएगी

रहगुजर पे रहबरों की रहबरी रह जाएगी ज़िंदगी फिर ज़िंदगी को ढूंढती रह जाएगी मैं चला जाउंगा अपनी प्यास होठों पर लिए मुद्दतों दरिया में लेकिन खलबली रह जाएगी रौशनी की बारिशें हर सम्त से होंगी मगर मेरी आंखों में फरोजां तीरगी रह जाएगी हर कदम पर मैं बिखर जाउंगा राहों की तरह इस सफर में मुझको मंजिल ढूंढती रह जाएगी दिन के आंगन में सजीली धूप रौशन हो न हो रात के दर पर शिकस्ता चांदनी रह जाएगी हमको दुनिया भर की दौलत भी मयस्सर हो तो क्या ज़िंदगी में कुछ न कुछ फिर भी कमी रह जाएगी झिलमिलाती साअतों की रहगुजर पे मुद्दतों रौशनी शामो-सहर की कांपती रह जाएगी लम्हा-लम्हा बेसबब होते रहेंगे रोजो-शब इस सफर में मेरे पीछे इक सदी रह जाएगी © Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम