रिश्तों के पौधे

तुमने कहा था- ”रिश्ते पौधे होते हैं जिन्हें पानी देना होता है रोज़ नहीं तो वे मुरझाते हैं और फिर सड़ जाते हैं एक दिन” पता नहीं क्यों मुझे लगा था कि तुम्हारे रिश्ते गमले में लगे पौधे हैं जिन्हें गहरा बोने के लिए मन की ज़मीन शायद नहीं थी तुम्हारे पास नहीं तो ऐसा कैसे हुआ कि वही रिश्ता उगा मेरे मन की ज़मीन पर एक वट वृक्ष की तरह असंख्य जड़ों के साथ जितनी थीं वो मन के भीतर उतनी ही बाहर भी…. © Sandhya Garg : संध्या गर्ग