रोज़ मिलता है वनवास

राम इस दौर का बुढ़ापे का सहारा बने
रहती है बस यही आस दशरथ को
तृष्णा की मंथरा दरार डाल दे न कहीं
सालता है यही अहसास दशरथ को
लाडलों ने जाने कैसा फ़रमान रख दिया
आज फिर देखा है उदास दशरथ को
राम को मिला था वनवास युग बीत गए
रोज़ मिलता है वनवास दशरथ को

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण