सितम इस पार है

सितम इस पार है जो भी वही उस पार हो शायद
उधर भी राहे उल्फ़त में कोई दीवार हो शायद

कभी ये सोचकर हमने न की कोशिश यक़ीं मानो
हमारे जीतने में भी हमारी हार हो शायद

नहीं रखता मरासिम मैं गुलों से सोचकर ये ही
लबों पर जिसके नज़र में ख़ार हो शायद

मुझे इंक़ार कब यारों है अपनी हक़ परस्ती से
मगर ये सोचकर चुप हूँ, किसी पर बार हो शायद

लबों पर ज़र्द ख़ामोशी सजाकर रात बैठी है
कोई जुगनू चमकने को अभी तैयार हो शायद

गिरी है बूंद शबनम की अभी इक गुल की ऑंखों से
ये मुमक़िन है कहीं कोई कली बीमार हो शायद

यहाँ ये सोचकर सबने ‘चरन’ की है पज़ीराई
ग़ुनाहों का यहाँ पर भी कोई बाज़ार हो शायद

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण