सूखे फूल

मैं अक्सर सोचती हूँ, तुम्हारे दिए, उन फूलों को देखकर जो अब मेरी डायरी में सूखे पड़े हैं …चन्द दिन बाद रह जाऊंगी, इन फूलों जैसी ही तुम्हारे जीवन से ऐसे ही चली जाऊंगी जैसे कभी डाली से टूटे थे ये फूल फिर रह जाएंगी मेरी यादें पहले कुछ दिन एक भीनी ख़ुशबू के साथ वही खुशबू जो इन फूलों से आती थी और फिर तुम्हारे जीवन की डायरी में ऐसे ही किसी पृष्ठ पर रह जाएंगी बिना ख़ुशबू, बिना रंग के बिखरने को तैयार पत्तियों को लिए इन्हीं फूलों की तरह और तब मैं कुछ सहमते हुए भीगी आँखें लिए अपने विचारों से ख़ुद ही डरती, सोचती हूँ कि क्या तुम मेरी यादों को रख पाओगे सहेज कर उसी तरह जैसे मैं सहेजे हूँ कुछ फूलों की पत्तियाँ…. © Sandhya Garg : संध्या गर्ग