स्वयं से संवाद

साथ किसी के रहना लेकिन
खुद को खुद से दूर न रखना।

रेगिस्तानों में उगते हैं
अनबोये काँटों के जंगल,
भीतर एक नदी होगी तो
कलकल कलकल होगी हलचल,

जो प्यासे सदियों से बंधक
अब उनको मजबूर न रखना।

खण्डहरों ने रोज बताया
सारे किले ढहा करते हैं,
कोशिश से सब कुछ संभव है
सच ही लोग कहा करते हैं,

भले दरक जाना बाहर से
मन को चकनाचूर न रखना।

पहले से होता आया है
आगे भी होता जायेगा,
अंगारों के घर से अक्सर
फूलों को न्योता आयेगा,

आग दिखाना नक्कारों को
शोलों पर संतूर न रखना।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल