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अलिफ़ लैला

शाह की सबसे चहेती मलिका बेवफ़ा निकली। औरत ज़ात से नफरत हो गई। हर रोज़ नई शादी करता, हर रात सुहागरात। मगर सुबह होते ही हर नई दुल्हन को मौत के घाट उतार दिया जाता। सहराज़ादी, उसके बूढ़े मंत्री की बेटी। उसने भी नृशंस शाह के साथ शादी रचाई। मगर अपने साथ ले गई अपनी छोटी-सी बहन को। रात को सोने से पहले छोटी बहन ने कहानी सुनने की ज़िद्द की। सहराज़ादी ने कहानी छेड़ी जो सुबह तक ख़त्म नहीं हुई। शाह को भी अच्छी लगी। यूँ ही कहानी में से कहानी निकलती चली गई। पूरी 1001 रातें बीत गईं। शाह का हृदय परिवर्तन हुआ। सहराज़ादी आख़िर तक उसकी मलिका बनकर जी।

नीड़ छोड़कर उड़ चला कल्पना पाखी
वह देखो भर रहा काकली
चुभो-चुभो कर चोंच शून्य में मेरे
मण्डराता फिर रहा
बुद्धि के चक्रव्यूह पर

सांझ ढले
रोमिल डैनों के चप्पू
कहाँ तुझे तैरा लाए
रे पगले!

अलिफ़ लैला का माया लोक
बहुत दिन हुए
यहीं तो
राजदुलारे स्वप्न लला
रुन-रुना-रुना आनन्द पैंजनी
किलक-थिरक नाचा करते थे!

दूर खजूरों के पीछे
वह देखो वह
नया ईद का चांद उभर आया है
ऊँची मीनारों से
अल्लाऽऽऽहू अकबर
अल्लाऽऽऽहू अकबर
उठने लगी अज़ानें

दूध नहाए गुंबद
देख रहे हैं
क्या कोई मरमरी स्वप्न?

विरही होगा
जो दूर
रात के सन्नाटे में
बैठा अपनी तड़प कस रहा है
रुबाब के तारों पर

कहवाख़ानों में
दूर-दूर के सौदागर
अपनी थैली के गौहर
नाच लुभा लेने वाले
गुलबदन सनम की अदा-अदा पर
लुटा रहे हैं!

आहिस्त:
आहिस्त:
किसी प्रेत की दन्तावलि-सी
अंधियारे में चमक रहीं
अधखुली खिड़कियाँ
उस नृशंस शाह के महलों की
जिसकी नित्य नई दुल्हनें
हज़ारों
अपनी-अपनी सुहागरात का
देख न पाईं कभी सवेरा!

सहराज़ादी
बूढ़े मंत्री की वह सुघड़ साहसी बेटी
क्या अभिनय कर रही सुलाने का
अपनी नटखट गुड़िया को
बड़ी चतुर है-
जान-बूझ कर
बहुरंगी गाथा-गुत्थी के
लच्छों पर लच्छे
उलझाने लग गई
वाह री गल्प मोहिनी तेरा जादू
फँसा लिया निर्मम साजन को!

बाहर
यह लो लगी सरकने
आसमान के पल्लू की झिलमिली किनारी
प्राची की दुल्हन का
गया उघड़ वह अलस लजाया मुखड़ा
इधर
निशा के मसि पात्र में
झुटपुट घुलने लगी सफेदी

कौन नगरिया
बढ़ा चला जा रहा कारवाँ
टिनटिना टालियाँ
पलकों पर कर रहीं टोटका
नयन झील में लगी तैरने
स्वप्न फरिश्तों की अल्हड़ अलमस्त टोलियाँ
घिर-घिर आने लगी निदरिया!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता

 

गल्प मोहिनी

गल्प मोहिनी
आभारी हूँ
तूने सैर कराई मुझको
गुलिस्तान की
परिस्तान की
अद्भुत रेगिस्तान समुन्दर
कभी सिकन्दर
कभी कलन्दर
अली बाबा, सिन्दबाद जहाज़ी
वह तेरा मुल्ला, वह तेरा काज़ी
तिलिस्म अरे शैतानी- अल्लाह
शमशीर-ए-सुलेमानी- अल्लाह
अहा चिराग़-ए-अलादीन
शहज़ादी है पर्दानशीन
बाज़ीगरों के ज़ौहर देखे
सौदागरों के गौहर देखे
चांदनी रात और पेड़ खजूर
नाच रही बसरे की हूर
वल्ले वळुर्बान
मेरी जान!
ऐसी आज पिला दे साक़ी
होश-हवास रहे न बाक़ी!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता