बिल्ली तुम कैसी मौसी हो
समझ न मेरे आया
चूहा कैसे खा जाती हो
सोच-सोच चकराया
अगर तुम्हें मौसी रहना है
सीखो ढंग से रहना
छोड़ म्याऊँ-म्याऊँ अब
तुम ‘मे आई कम इन’ कहना
© Ajay Janamjay : अजय जनमेजय
बिल्ली तुम कैसी मौसी हो
समझ न मेरे आया
चूहा कैसे खा जाती हो
सोच-सोच चकराया
अगर तुम्हें मौसी रहना है
सीखो ढंग से रहना
छोड़ म्याऊँ-म्याऊँ अब
तुम ‘मे आई कम इन’ कहना
© Ajay Janamjay : अजय जनमेजय
नाम : अजय जनमेजय
जन्म : 28 नवम्बर 1955; हस्तिनापुर
शिक्षा : एमबीबीएस
प्रकाशन:-
1) सच सूली पर टँगने हैं
2) तुम्हारे बाद
3) अक्कड़-बक्कड़ हो-हो-हो
4) हरा समुंदर गोपी चंदर
5) ईचक दाना बीचक दाना
6) समय की शिला पर
7) बाल सुमनों के नाम
8) नन्हे पंख ऊँची उड़ान
निवास : बिजनौर
28 नवम्बर सन् 1955 को हस्तिनापुर, उत्तर प्रदेश में जन्मे अजय जनमेजय पेशे से चिकित्सक हैं। इस समय आपका कर्मक्षेत्र तथा निवास बिजनौर में है। डॉ. अजय जनमेजय बाल मनोविज्ञान के विशेषज्ञ हैं, कदाचित् यही कारण है कि आपकी कृतियों में बालोपयोगी साहित्य की बहुतायत है। बिना किसी आपाधापी के चुपचाप साहित्य साधना में संलग्न डॉ. अजय जनमेजय एक दर्जन से अधिक पुरस्कार और सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है। अनेक संकलनों में आपकी रचनाएँ तथा कृतित्व को संकलित किया गया है।
‘सच सूली पर टँगने हैं’, ‘तुम्हारे बाद’, ‘अक्कड़-बक्कड़ हो-हो-हो’, ‘हरा समुंदर गोपी चंदर’, ‘ईचक दाना बीचक दाना’, ‘समय की शिला पर’, ‘बाल सुमनों के नाम’ और ‘नन्हे पंख ऊँची उड़ान’ जैसे अनेक संग्रहों के साथ-साथ आपने अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों का संपादन भी किया है।
लोरियाँ, बालगीत, बाल कविताएँ, बाल कहानियाँ, ग़ज़ल और कविता समेत अनेक विधाओं में आपने लेखनी चलाई है। इसके अतिरिक्त बिजनौर की साहित्यिक धरोहर को सहेजने के लिए भी आप निरंतर प्रयासरत हैं।