Tag Archives: Bharat Bhushan Poems

तस्वीर अधूरी रहनी थी

तू मन अनमना न कर अपना, इसमें कुछ दोष नहीं तेरा
धरती के काग़ज़ पर मेरी, तस्वीर अधूरी रहनी थी

रेती पर लिखे नाम जैसा, मुझको दो घड़ी उभरना था
मलयानिल के बहकाने पर, बस एक प्रभात निखरना था
गूंगे के मनोभाव जैसे, वाणी स्वीकार न कर पाए
ऐसे ही मेरा हृदय-कुसुम, असमर्पित सूख बिखरना था
जैसे कोई प्यासा मरता, जल के अभाव में विष पी ले
मेरे जीवन में भी कोई, ऐसी मजबूरी रहनी थी

इच्छाओं के उगते बिरुवे, सब के सब सफल नहीं होते
हर एक लहर के जूड़े में, अरुणारे कमल नहीं होते
माटी का अंतर नहीं मगर, अंतर रेखाओं का तो है
हर एक दीप के हँसने को, शीशे के महल नहीं होते
दर्पण में परछाई जैसे, दीखे तो पर अनछुई रहे
सारे सुख-वैभव से यूँ ही, मेरी भी दूरी रहनी थी

मैंने शायद गत जन्मों में, अधबने नीड़ तोड़े होंगे
चातक का स्वर सुनने वाले, बादल वापस मोड़े होंगे
ऐसा अपराध किया होगा, जिसकी कुछ क्षमा नहीं होती
तितली के पर नोचे होंगे, हिरनों के दृग फोड़े होंगे
अनगिनती कर्ज़ चुकाने थे, इसलिए ज़िन्दगी भर मेरे
तन को बेचैन विचरना था, मन में कस्तूरी रहनी थी

© Bharat Bhushan : भारत भूषण

 

चाह में है और कोई

ये असंगति जिन्दगी के द्वार सौ-सौ बार रोई
बांह में है और कोई, चाह में है और कोई

साँप के आलिंगनों में
मौन चन्दन तन पड़े हैं
सेज के सपनों भरे कुछ
फूल मुर्दों पर चढ़े हैं
ये विषमता भावना ने सिसकियाँ भरते समोई
देह में है और कोई, नेह में है और कोई

स्वप्न के शव पर खड़े हो
मांग भरती हैं प्रथाएं
कंगनों से तोड़ हीरा
खा रहीं कितनी व्यथाएं
ये कथाएं उग रही हैं नागफन जैसी अबोई
सृष्टि में है और कोई, दृष्टि में है और कोई

जो समर्पण ही नहीं हैं
वे समर्पण भी हुए हैं
देह सब जूठी पड़ी है
प्राण फिर भी अनछुए हैं
ये विकलता हर अधर ने कंठ के नीचे सँजोई
हास में है और कोई, प्यास में है और कोई

© Bharat Bhushan : भारत भूषण

 

मेरी नींद चुराने वाले

मेरी नींद चुराने वाले, जा तुझको भी नींद न आए
पूनम वाला चांद तुझे भी सारी-सारी रात जगाए

तुझे अकेले तन से अपने, बड़ी लगे अपनी ही शैय्या
चित्र रचे वह जिसमें, चीरहरण करता हो कृष्ण-कन्हैया
बार-बार आँचल सम्भालते, तू रह-रह मन में झुंझलाए
कभी घटा-सी घिरे नयन में, कभी-कभी फागुन बौराए
मेरी नींद चुराने वाले, जा तुझको भी नींद न आए

बरबस तेरी दृष्टि चुरा लें, कंगनी से कपोत के जोड़े
पहले तो तोड़े गुलाब तू, फिर उसकी पंखुडियाँ तोड़े
होठ थकें ‘हाँ’ कहने में भी, जब कोई आवाज़ लगाए
चुभ-चुभ जाए सुई हाथ में, धागा उलझ-उलझ रह जाए
मेरी नींद चुराने वाले, जा तुझको भी नींद न आए

बेसुध बैठ कहीं धरती पर, तू हस्ताक्षर करे किसी के
नए-नए संबोधन सोचे, डरी-डरी पहली पाती के
जिय बिनु देह नदी बिनु वारी, तेरा रोम-रोम दुहराए
ईश्वर करे हृदय में तेरे, कभी कोई सपना अँकुराए
मेरी नींद चुराने वाले, जा तुझको भी नींद न आए

© Bharat Bhushan : भारत भूषण