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दोधारी तलवार से

सोचो भाई कैसे निपटें आख़िर भ्रष्टाचार से
इसको कैसे क़लम करें हम दोधारी तलवार से

स्वार्थ हमें अंधा कर देता, बांधे पट्टी आँखों पर
अपनी जड़ को छोड़ उछलते हम मतवाली शाख़ों पर
आँखों का पानी मर जाता इसके अत्याचार से
इसको कैसे क़लम करें हम दोधारी तलवार से

सच्चाई का दामन थामें अपने पर विश्वास हो
नेक इरादे लोहे जैसे और अपनों का साथ हो
आपस में सद्भाव बनाएँ इक-दूजे में प्यार से
इसको कैसे क़लम करें हम दोधारी तलवार से

आओ भाई मिलकर निपटें शातिर भ्रष्टाचार से
इसको हम सब क़लम करें अब दोधारी तलवार से

© Ambrish Srivastava : अम्बरीष श्रीवास्तव

 

विश्वामित्र

इन्द्र को हर समय अपने सिंहासन की फ़िक्र लगी रहती है। विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए स्वर्ग से मेनका नामक अप्सरा को भेजा गया। वह सफल भी हुई। कहते हैं शकुन्तला, जो आगे

चलकर कण्व ॠषि के आश्रम में पल कर बड़ी हुई, विश्वामित्र और मेनका की ही पुत्री थी।

मत पूछ अप्सरे!
इस मुस्कान का रहस्य मत पूछ
समझ ले कि यूँ ही बस
मुझसे रहा नहीं गया!
तेरी भौहों में तने विजयादर्प की-
डरता हूँ
-कहीं शिंजा ही न टूट जाए!
यह साफ शरारती हँसी
इसमें आग भी लग सकती है।

इन्द्रासन सुरक्षित हुआ
तेरी अर्थ सिद्धि हो गई
अब तू जा
तपोवन हम जैसों के लिए है

मैं कह तो दूँ
पर तू
मात्र अभिनय ही रहा हो
जिसके सम्पूर्ण अस्तित्व का अर्थ
तू समझेगी क्या?

सत्य दर्शन
ये रहस्य की बातें
तू समझ सकती
तो कैसे वह महफिल सजती?
न नाचती होती
हत-बल देवताओं के
ईष्यालु शासक के इशारों पर
और बार-बार यह जो तुझे
नीचे उतर आना होता है
यह भी न होता।

सूने में मधुबन
तू क्या समझती है
कोई अनंग आ कर भर गया?
पर जान सके यदि
है यह भी तपस्या का ही चमत्कार!

वृथा डरता है तेरा लोभी स्वामी
हम तपस्वी तो
किसी का स्वर्ग हड़पने नहीं
अपितु तुझे उतार लाने को
समाधिस्थ होते हैं, नादान!

स्वयं मुक्ति आकर गलबाँहें डाले
कल्पना मूर्ति के अधरों का रसपान
मैंने भगवान को नाचते देखा है
मगर
अब बता कैसे न हँसता?
-वह समझता है कि
मेरी तपस्या धूल कर चला!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता