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सपने गीत बने

किसे पता है? अक्सर मेरे सपने गीत बने।

कुछ सपने मेलोँ जैसे हैँ कोई है सूने का सपना।
कभी कभी क्षमता से ऊँचा इन्द्रधनुष छूने का सपना।
जैसे हारी हुयी थकन का सपना जीत बने।

कमरे की खिड़की का परदा मैँने अरसे बाद हटाया,
खिड़की से चिपका बैठा था कब से पागल चाँद लजाया।
मै भी चाहूँ मेरा भी कुछ सुखद अतीत बने।

अगर गीत बनवाना हो तो तुम भी अपने सपने देना,
मुझे रात दिन हँसने रोने लिखने और तड़पने देना।
बस सपने ही दिये सभी ने जो भी मीत बने।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल

 

कवि

एक विचार
बीज रूप में
गिरा उस कोख में
गर्भ ठहरा
मथती रही अभिव्यक्ति
उसे जन्म लेने के लिए।
न शब्द था संग
न अर्थ थे
थे केवल कोरे विचार
बिलख रही कोख में
बन्धया अभिव्यक्ति
अर्थ पाने के लिए।
गर्भवती माँ की पीड़ा
आज समझ पाया था
एक गर्भ धारक कवि…!

© Ashish Kumar Anshu : आशीष कुमार ‘अंशु’

 

काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा

पहले मन में पीड़ा जागी
फिर भाव जगे मन-आंगन में
जब आंगन छोटा लगा उसे
कुछ ऐसे सँवर गई पीड़ा
क़ागज़ पर उतर गई पीड़ा…

जाने-पहचाने चेहरों ने
जब बिना दोष उजियारों का
रिश्ता अंधियारों से जोड़ा
जब क़समें खाने वालों ने
अपना बतलाने वालों ने
दिल का दर्पण पल-पल तोड़ा
टूटे दिल को समझाने को
मुश्क़िल में साथ निभाने को
और छोड़ के सारे ज़माने को
हर हद से गुज़र गई पीड़ा…

ये चांद-सितारे और अम्बर
पहले अपने-से लगे मगर
फिर धीरे-धीरे पहचाने
ये धन-वैभव, ये कीर्ति-शिखर
पहले अपने-से लगे मगर
फिर ये भी निकले बेगाने
फिर मन का सूनापन हरने
और सारा खालीपन भरने
ममतामई आँचल को लेकर
अन्तस् में ठहर गई पीड़ा
काग़ज़ पर उतर गई पीड़ा…

कुछ ख़्वाब पले जब आँखों में
बेगानों तक का प्यार मिला
यूँ लगा कि ये संसार मिला
जब आँसू छ्लके आँखों से
अपनों तक से प्रतिकार मिला
चुप रहने का अधिकार मिला
फिर ख़ुद में इक विश्वास मिला
कुछ होने का अहसास मिला
फिर एक खुला आकाश मिला
तारों-सी बिखर गई पीड़ा…

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी