Tag Archives: Davendra Gautam Poem

रिश्तों के जंगल

हमें रिश्तों के जंगल में भला क्योंकर भटकने का
जो सुख-दुख में रहे शामिल उसे अपना समझने का

किसी की बात सुनने का, न अपनी बात कहने का
मगर अपनी कसौटी पर खरा होकर उतरने का

हकीक़त जिंदगी की वो भला समझे तो क्या समझे
जिसे मौका नहीं मिलता कभी घर से निकलने का

कोई धीरे से आकर आईना दिखला गया मुझको
अगर चेहरों के जंगल से कभी चाहा गुजरने का

कोई ताकत नहीं जो रोक ले रफ्तार फिर अपनी
अगर हम ठान लें कुछ ज़िंदगी में कर गुजरने का

कभी घुट-घुट के जीते हैं, कभी तिल-तिल के मरते हैं
सलीका ही नहीं आता हमें जीने का मरने का

चलेगी सांस जबतक इस ज़मीं पे दोस्तो, अपनी
रहेगा सिलसिला यूं ही सिमटने और बिखरने का

दरख्तों पे, चटानों पे, बिछी है बर्फ की चादर
यही मौसम तो होता है पहाड़ों के निखरने का

© Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम

 

धुआं

हरेक सांस में आता है गाम-गाम धुआं
बदल के रख दो मेरी जिंदगी का नाम धुआं

बहुत करीब है जैसे घुटन की रात कोई
उड़ा रही है मेरी बेबसी की शाम धुआं

हरेक सम्त है कुहरा घना जिधर देखो
हुआ है आज तो जैसे कि बेलगाम धुआं

किसी के अश्क बहे बोझ कम हुआ दिल का
चलो कि आज तो आया किसी के काम धुआं

कहीं पे बैठ के कुछ दम लगा कि चैन मिले
उड़ा कभी-कभी वहशी जहां के नाम धुआं

वो कौन लोग थे जो खो गए खलाओं में
गरीब जिस्म का है आखरी मुकाम धुआं

कहां -कहां की फ़ज़ा याद आ गयी गौतम
ब-वक्ते-शाम जो देखा है नंगे-शाम धुआं

© Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम

 

किरदार खो बैठे

दिलों को जोड़ने वाला सुनहरा तार खो बैठे
कहानी कहते-कहते हम कई किरदार खो बैठे

हमें महसूस जो होता है खुल के कह नहीं पाते
कलम तो है वही लेकिन कलम की धार खो बैठे

हरेक सौदा मुनाफे में पटाना चाहता है वो
मगर डरता भी है, ऐसा न हो, बाजार खो बैठे

कभी ऐसी हवा आई कि सब जंगल दहक उट्ठे
कभी बारिश हुई ऐसी कि हम अंगार खो बैठे

नशा शोहरत का पर्वत से गिरा देता है खाई में
खुद अपने फ़न के जंगल में कई फ़नकार खो बैठे

खुदा होता तो मिल जाता मगर उसके तवक्को में
नजर के सामने हासिल था जो संसार, खो बैठे

मेरी यादों के दफ्तर में कई ऐसे मुसाफिर हैं
चले हमराह लेकिन राह में रफ्तार खो बैठे

हमारे सामने अब धूप है, बारिश है, आंधी है
कि जिसकी छांव में बैठे थे वो दीवार खो बैठे

अगर सुर से मिलाओ सुर तो फिर संगीत बन जाए
वो पायल क्या जरा बजते ही जो झंकार खो बैठे.

© Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम