Tag Archives: Deepak Gupta Poems

ऐसे हालात आने लगे हैं

ऐसे हालात आने लगे हैं
चुटकुले भी रुलाने लगे हैं

एक कविता जमाने की ख़ातिर
उनको कितने ज़माने लगे हैं

होश की बात करने लगा हूँ
आप जब से पिलाने लगे हैं

तुमको पाकर लगा ज़िंदगी में
हाथ मेरे ख़ज़ाने लगे हैं

हो न जाऊँ कहीं बेसहारा
मेरे बच्चे कमाने लगे हैं

© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता

 

कैसे फकीर हो तुम

कैसे फ़क़ीर हो तुम
पैसे के पीर हो तुम

रखकर ज़मीर गिरवी
बनते अमीर हो तुम

जो दिल में चुभ रहा है
इक ऐसा तीर हो तुम

आगे न बढ़ सकी जो
ऐसी लकीर हो तुम

कविता में सौदेबाजी
कैसे कबीर हो तुम

© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता

 

मैं समझाता कब तक

ख़ुद को मैं समझाता कब तक
सच को मैं झुठलाता कब तक

इकतरफ़ा था प्यार मेरा, मैं
तुम पर हक़ जतलाता कब तक

मेरा मन रखने की ख़ातिर
वो, सपनों में आता कब तक

दुनियादारी के चंगुल से
आख़िर मैं बच पाता कब तक

आख़िर अपनी तन्हाई से
‘दीपक’ मैं लड़ पाता कब तक

© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता

 

सवालों की तरह

लोग मिलते हैं सवालों की तरह
जैसे बिन चाबी के तालों की तरह

भूख में लम्हात को खाया गया
सख़्त रोटी के निवालों की तरह

घर अगर घर ही रहें तो ठीक है
क्यों बनाते हो शिवालों की तरह

दीप-सा किरदार तो पैदा करो
लोग चाहेंगे उजालों की तरह

ख़ुद को तुम इन्सान तो साबित करो
याद आओगे मिसालों की तरह

© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता

 

यही है दर्द मेरा

यही है दर्द मेरा, लोग मुझको कब समझते हैं
मैं शातिर हूँ नहीं इतना कि, जितना सब समझते हैं

ज़माने को समझने में हमारी उम्र गुज़री है
मियां, हम आपकी हर बात का मतलब समझते हैं

जमूरा भूख से जब पेट पकड़े छटपटाता है
अजब हैं लोग उसको भी महज करतब समझते हैं

तुम्हारी हर अदा जैसे कि मुझसे बात करती है
तुम्हारी आँख की बोली को मेरे लब समझते है

यकीं मानो न मानो तुमसे ही क़िस्मत हमारी है
खुदा भी जानता है हम तुम्हें ही रब समझते हैं

© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता