ऐसे हालात आने लगे हैं
चुटकुले भी रुलाने लगे हैं
एक कविता जमाने की ख़ातिर
उनको कितने ज़माने लगे हैं
होश की बात करने लगा हूँ
आप जब से पिलाने लगे हैं
तुमको पाकर लगा ज़िंदगी में
हाथ मेरे ख़ज़ाने लगे हैं
हो न जाऊँ कहीं बेसहारा
मेरे बच्चे कमाने लगे हैं
© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता