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Sandhya Garg : संध्या गर्ग

नाम : संध्या गर्ग
जन्म : 31 जुलाई 1966 (दिल्ली)
शिक्षा : पीएच डी (हिंदी साहित्य)

प्रकाशन
अपना-अपना सच; शिल्पायन प्रकाशन
नारी विमर्श : विविध आयाम; पाँखी प्रकाशन
मीडिया और साहित्य : सामाजिक सरोकार; पाँखी प्रकाशन
अभिव्यक्ति का नया माध्यम : ब्लॉग; पाँखी प्रकाशन

निवास : दिल्ली

31 जुलाई 1966 को दिल्ली में जन्मी संध्या गर्ग मूलतः नारी मन की उन संवेदनाओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करती हैं जो भारत जैसे देश की प्रत्येक कामकाजी महिला के मन में कुलांचें भरती है। संध्या जी की रचनाओं में नारीमुक्ति की नारेबज़ी तो नहीं है, लेकिन संबंधों और भौतिक जगत् के द्वंद्व में फँसी
नारी की पीड़ा अवश्य है। बेहद सादगी से आम भारतीया की ज़ुबान में लिखी गई ये रचनाएँ कहीं न कहीं आत्मकथ्य सी जान पड़ती हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत संध्या जी आगामी पीड़ी की नारी में हो रहे परिवर्तन को भी उतनी ही ख़ूबसूरती से बयान करती हैं, जितनी अपनी माँ और दादी के
मनोभावों को। भौतिकता और संवेदना के बीच की खींचतान आपकी रचनाओं में साफ़ दिखाई देती है।
आपने अज्ञेय पर शोध किया है और तमाम पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख, कविता आदि प्रकाशित हो रहे हैं।
वरिष्ठ कवि राजगोपाल सिंह ने संध्या जी के काव्य संग्रह ‘अपना-अपना सच’ की भूमिका में लिखा है- “संध्या जी ने अपने मन के संवेदनात्मक लम्हों का जो मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है, वह सराहनीय तो है ही, साथ ही अत्यंत दुरूह भी!

कवयित्री मन की महीन परतों में छिपे अहसासात की बारीक़ीयों को इतनी बेबाक़ी से बयान करती है, कि पाठकों के मन में सिहरन सी दौड़ जाती है। काश! कोई छू ले मन, देह छुए बिना…’ -मात्र एक पंक्ति में ही इस भौतिक युग की भोगवादी संस्कृति को नकारने का साहस बड़े-बड़े नामवर लेखक भी नहीं जुटा पाते। हाँ,
बोल्डनेस के नाम पर अनेक लेखिकाओं ने जो ‘साहित्य’ रचा है, वह और बात है।

डॉ. संध्या गर्ग की रचनाएँ, मात्र रचनाएँ न होकर, अनुभवों की सतत् पाठशाला से प्राप्त गहन अनुभूतियाँ जान पड़ती हैं। उनकी अनेक रचनाओं में नारी के सहज विद्रोह की झलक है।”

 

 

Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य

नाम : नरेश शांडिल्य
जन्म : 15 अगस्त 1958 (दिल्ली)
शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिन्दी)

प्रकाशन
कुछ पानी कुछ आग
टुकड़ा-टुकड़ा ये ज़िन्दगी
दर्द जब हँसता है
मैं सदियों की प्यास

निवास : दिल्ली

15 अगस्त 1958 को दिल्ली में जन्मे नरेश शांडिल्य इस समय एक सशक्त दोहाकार के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। हिन्दी विषय से स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद बैंककर्मी के रूप में आपने आजीविका प्रारंभ की।
ख़ुद्दारी, संस्कृति और आत्मविश्वास से ओत-प्रोत आपकी रचनाएँ अपने चरम पर पहुँचते हुए दार्शनिक होती जाती हैं। ग़ज़ल, गीत, मुक्तछंद तथा दोहे आदि तमाम विधाओं में आपने अपनी लेखनी चलाई है। वर्तमान हिन्दी काव्य मंच पर तमाम संचालक आपके दोहों का प्रयोग करते देखे जा सकते हैं।

इस समय आप त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘अक्षरम् संगोष्ठी’ के संपादक हैं तथा प्रवासी भारतीयों की अंतरराष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘प्रवासी टुडे’ के रचनात्मक निदेशक हैं।

देश-विदेश में आपने अपनी कविताओं के माध्यम से श्रोताओं से सीधे तारतम्य स्थापित किया है। अनेक महत्तवपूर्ण सम्मान तथा पुरस्कार आपको प्राप्त हैं और साथ ही ‘टुकड़ा-टुकड़ा ये ज़िन्दगी’, ‘दर्द जब हँसता है’, ‘मैं सदियों की प्यास’ तथा ‘कुछ पानी कुछ आग’ के नाम से आपके काव्य संग्रह प्रकाशित हो
चुके हैं। इतना ही नहीं ‘नाटय प्रस्तुति में गीतों की सार्थकता’ विषय पर आपका एक शोधकार्य भी उपलब्ध है।

आप नाटय जगत् से भी जुड़े हैं। अनेक नाटय प्रस्तुतियों में आपने स्वयं अभिनय तो किया ही है साथ ही लगभग 20 नाटकों के लिए आपने 50 से अधिक गीत भी लिखे हैं।

आपकी पुस्तक ‘कुछ पानी कुछ आग’ की भूमिका में डॉ. बलदेव वंशी आपके विषय में लिखते हैं- ”कवि के स्वर में एक चुनौती भी है। निर्धन, उपेक्षित, उत्पीड़ित की पक्षधरता में वह दृढ़ता से सन्नध्द ही नहीं, ललकारता भी है- अपनी मानवीय संवेदना की ज़मीन पर खड़ा होकर- अलमस्त फ़क़ीर और कबीर के स्वरों में।
जुझारूपन, संघर्ष और चुनौती को मशाल की तरह उठाए कवि कबीरी-फ़क़ीरी दु:साहस में से बोलता है, जो अपने समय की अपने से बड़ी राजसी-साम्प्रदायिक, सामाजिक सत्ता-व्यवस्थाओं से भिड़ने से ज़रा भी संकोच नहीं करता।”

उनकी ग़ज़लों की प्रशंसा करते हुए वरिष्ठ कवि बालस्वरूप राही लिखते हैं- ”दोहा, गीत तथा नुक्कड़ कविता में पारंगत होने के कारण नरेश शांडिल्य को अपनी ग़ज़लों में इन विधाओं की विशेषताओं का पूरा-पूरा लाभ मिला है। वे हमें कहीं भी बनावटी अथवा ऊपरी नहीं लगतीं। उनकी ग़ज़लों में गीतों जैसी एकान्विति है। यह
नहीं कि एक शे’र गहरी पीड़ा का है तो दूसरा विलास-क्रीड़ा का। दोहों के अत्यंत सफल कवि होने के कारण उन्हें दोहों की सार्थक संक्षिप्तता का लाभ अपने शे’रों की बुनावट में मिला है।

 

Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर

नाम : विष्णु प्रभाकर
जन्म : 21 जून 1912
शिक्षा :हिन्दी प्रभाकर

प्रकाशन
1) ढलती रात 1951
2) निशिकान्त 1955
3) तट के बन्धन 1955
4) स्वप्नमयी 1956
5) दर्पण का व्यक्ति 1968
6) परछाई 1968
7) कोई तो 1980
8) अर्द्धनारीश्वर 1992
9) संकल्प
10) जीवन पराग 1963
11) आपकी कृपा है 1982
12) कौन जीता कौन हारा 1989
13) चन्द्रहार 1952
14) होरी 1955
15) सुनंदा 1984
16) आवारा मसीहा 1974
17) चलता चला जाऊँगा 2010
18) जमना गंगा के नैहर में 1964
19) हँसते निर्झर दहकती भट्टी 1966
20) अभियान और यात्राएँ (संपादित) 1964
21) हिमशिखरों की छाया में 1981
22) ज्योतिपुंज हिमालय 1982

पुरस्कार एवं सम्मान
1) उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कथा-संग्रह ‘संघर्ष के बाद’ अगस्त 1956 में पुरस्कृत
2) इंडियन राइटर्स एसोसिएशन द्वारा पाब्लो नेरूदा सम्मान 1974
3) इंटरनेशनल ह्यूमनिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा इंटरनेशनल ह्यूमनिस्ट अवार्ड 1975
4) उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘आवारा मसीहा’ पर तुलसी पुरस्कार 1975-76
5) सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार 1976, राष्ट्रीय एकता पुरस्कार 1980
6) ‘शब्द शिल्पी’ की उपाधि 1981
7) हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा ‘आवारा मसीहा’ पर ‘सूर पुरस्कार’ 1980-81
8) रोटरी क्लब दिल्ली द्वारा सम्मानित 1981
9) आल इंडिया आर्टिस्ट एसोसिएशन, शिमला द्वारा ‘भारतेंदु हरिश्चन्द्र पुरस्कार’ 1983
10) साहित्य मंच जालंधर द्वारा सम्मानित 1983
11) साहित्यकार अभिनंदन प्रकाशन द्वारा ‘लघुकथा वारिधि’ सम्मान 1984
12) हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति’ की मानद उपाधि 1986
13) भारतीय बाल कल्याण परिषद, कानपुर द्वारा सम्मानित 1986
14) राजभाषा विभाग, बिहार सरकार द्वारा ‘बेनीपुरी पुरस्कार’ 1986-87
15) साहित्यकार मंडल (हरिगढ़), अलीगढ़ द्वारा साहित्यकार शिरोमणि 1987
16) उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘संस्थान सम्मान’ 1987
17) हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा 1987-88 शलाका सम्मान
18) भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा ‘मूर्त्तिदेवी पुरस्कार’ 1988
19) महाराष्ट्र राज्य हिन्दी अकादमी द्वारा ‘अ.भा. हिन्दी सेवा पुरस्कार’ 1990-91
20) भारतीय भाषा परिषद, कलकत्ता द्वारा ‘हिन्दी भाषा साहित्यिक पुरस्कार’ 1992
21) साहित्य अकादमी पुरस्कार 1993
22) नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी द्वारा ताम्रपत्र से सम्मानित
23) उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘महात्मा गाँधी जीवन-दर्शन एवं साहित्य’ सम्मान 1995
24) केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा द्वारा ‘राहुल सांकृत्यायन यायावरी पुरस्कार’ 1995
25) बिहार राज्य राजभाषा समिति, पटना द्वारा ‘राजेन्द्र बाबू शिखर सम्मान’ 1999,
26) महामहिम राष्ट्रपति भारत सरकार द्वारा 26 जनवरी 2004 को पद्मभूषण
27) साहित्य अकादमी फैलोशिप 2006

निधन :11 अप्रैल 2009 (दिल्ली)

“अपने साहित्य में भारतीय वाग्मिता और अस्मिता को व्यंजित करने के लिये प्रसिद्ध रहे श्री विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून सन् 1912 को मीरापुर, ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा पंजाब में हुई। उन्होंने सन् 1929 में चंदूलाल एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल, हिसार से मैट्रिक की परीक्षा पास की। तत्पश्चात् नौकरी करते हुए पंजाब विश्वविद्यालय से भूषण, प्राज्ञ, विशारद, प्रभाकर आदि की हिंदी-संस्कृत परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से ही बी.ए. भी किया।

विष्णु प्रभाकर जी ने कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, निबंध, एकांकी, यात्रा-वृत्तांत और कविता आदि प्रमुख विधाओं में लगभग सौ कृतियाँ हिंदी को दीं। उनकी ‘आवारा मसीहा’ सर्वाधिक चर्चित जीवनी है, जिस पर उन्हें ‘पाब्लो नेरूदा सम्मान’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ सदृश अनेक देशी-विदेशी पुरस्कार मिले। प्रसिद्ध नाटक ‘सत्ता के आर-पार’ पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ मिला तथा हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वार ‘शलाका सम्मान’ भी। उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के ‘गांधी पुरस्कार’ तथा राजभाषा विभाग, बिहार के ‘डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान’ से भी सम्मानित किया गया।

विष्णु प्रव्हाकर जी आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबंधी मीडिया के विविध क्षेत्रों में पर्याप्त लोकप्रिय रहे। देश-विदेश की अनेक यात्राएँ करने वाले विष्णु जी जीवन पर्यंत पूर्णकालिक मसिजीवी रचनाकार के रूप में साहित्य-साधनारत रहे। 11 अप्रैल सन् 2009 को दिल्ली में विष्णु जी इस संसार से विदा ले गये।” -लेखक के एकमात्र कविता संग्रह ‘चलता चला जाऊंगा’ से साभार।

 

 

Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल

नाम : प्रवीण शुक्ल
जन्म : 7 जून 1970 (पिलखुवा)
शिक्षा : पीएच.डी.; स्नातकोत्तर (अर्थशास्त्र); बी.एड.

पुरस्कार एवं सम्मान
1) हिंदी गौरव सम्मान 1998
2) अट्टहास युवा रचनाकार सम्मान 2004
3) ओमप्रकाश आदित्य सम्मान 2006
4) काका हाथरसी पुरस्कार 2010

प्रकाशन
स्वर अहसासों के (काव्य संकलन)
कहाँ ये कहाँ वो (काव्य संकलन)
हँसते-हँसाते रहो (काव्य संकलन)
तुम्हारी आँख के आँसू (काव्य संकलन)
गांधी और गांधीगिरी
सफ़र बादलों का (यात्रा वृत्तांत)
हर हाल में ख़ुश हैं (अल्हड़ बीकानेरी की रचनाओं का संकलन)
इक प्यार का नग़मा है (संतोष आनंद की रचनाओं का संकलन)
मुहब्बत है क्या चीज़! (संतोष आनंद की रचनाओं का संकलन)
आइना अच्छा लगा (ग़ज़ल संग्रह)
नेताजी का चुनावी दौरा (व्यंग्य लेख संकलन)

निवास : नई दिल्ली

प्रवीण शुक्ल दिल्ली के एक विद्यालय में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में सेवारत हैं। आपके पिता श्री ब्रज शुक्ल ‘घायल’ भी अपने काव्यकर्म के लिए जाने जाते हैं।

आप वर्तमान समय में हिंदी की वाचिक परंपरा के कवियों में अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं। हास्य, व्यंग्य, गीत, ग़ज़ल और अन्य तमाम विधाएँ आपके सृजन के दायरे में आती हैं। तमाम जनसंचार माध्यमों से आपकी रचनाएँ, शोधपत्र तथा साक्षात्कार प्रसारित-प्रकाशित हो चुके हैं। आपने बैंकाक, मस्कट, दुबई, भूटान और यूनाइटेड किंग्डम जैसे देशों में अपनी काव्य-पताका फहराई है।

आपकी काव्य प्रतिभा के आधार पर आपके विषय में पद्मश्री गोपालदास ‘नीरज’ ने ‘तुम्हारी आँख के आँसू’ की भूमिका में लिखा है कि- “प्रवीण शुक्ल ने अपनी काव्य-प्रतिभा का जो स्वरूप प्रस्तुत किया है, उसे देखने के बाद मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूँ कि उनके पास नया सोच, नया कथ्य, नया बिम्ब सभी कुछ अनूठा है। यह युवा कवि आगे चलकर साहित्य-जगत को कोई ऐसी कृति अवश्य देगा जिससे वह स्वयं तो बड़ा कवि माना ही जायेगा, साथ ही उसकी इस कृति से साहित्य-जगत भी गौरवान्वित होगा।”

 

दिल्ली

दिल्ली तो करोड़ों दिल वालों की नगरिया है
कोई ले दिमाग़ से क्यों काम मेरे राम जी
भूले से, यहाँ जो चला आए एक बार कोई
जाने का कभी न लेगा नाम मेरे राम जी
पाँव रखने को मेट्रो रेल में जगह कहाँ
जाम हुईं सड़कें तमाम मेरे राम जी
जाम से भला क्यों घबराएँ कार वाले, यहाँ
कारों में छलकते हैं जाम मेरे राम जी

© Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’

 

Surendra Sharma : सुरेंद्र शर्मा

नाम : सुरेंद्र शर्मा
जन्म : 29 जुलाई 1945; नांगल चौधरी, हरियाणा
शिक्षा : स्नातक (वाणिज्य)

पुरस्कार एवं सम्मान
पद्मश्री

प्रकाशन
मानसरोवर के कौवे (व्यंग्य लेख संग्रह)
बुद्धिमानों की मूर्खताएं (व्यंग्य लेख संग्रह)
बड़े-बड़ों के उत्पात (व्यंग्य लेख संग्रह)
निवास : नई दिल्ली

सुरेंद्र शर्मा भारतीय हास्य का एक पर्याय हैं. भाषा की कमज़ोरियों को शक्ति के रूप में प्रयोग करके अपनी सहज भाव-भंगिमाओं के साथ मंच पर प्रस्तुत करने में सुरेंद्र शर्मा जी माहिर हैं. हरियाणा और राजस्थान के क्षेत्रीय भाषाई सौंदर्य का सम्मिश्रण आपकी रचनाओं का अहम् हिस्सा है. हास्य कवि के रूप में पूरी दुनिया में
लोकप्रिय हुए शर्मा जी एक गंभीर दार्शनिक और श्रेष्ठ गीतकार भी हैं. व्यंग्य-बोध और हास्य-बोध के साथ-साथ आपका संवेदना-बोध भी परिष्कृत है.

 

Anil Verma Meet : अनिल वर्मा ‘मीत’


नाम : अनिल वर्मा ‘मीत’
जन्म : 1962

निवास : नई दिल्ली


व्यंग्य और ग़ज़ल के एक अद्भुत सम्मिश्रण का नाम है अनिल वर्मा ‘मीत’. शायरी को वे न केवल जीते हैं बल्कि हर लिखने वाले का अपने अंतर्मन से सम्मान भी करते हैं. साहित्यिक गतिविधियों के आयोजन और संयोजन के लिए अनवरत प्रयासरत रहने वाले अनिल मीत अपना तन-मन-धन साहित्य सेवा को समर्पित कर चुके हैं.