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दीनू

दीनू की क़िस्मत फूटनी थी
सो फूट गई
सरकारी डॉक्टर ने
अल्सर का गोला बाहर निकाला
लेकिन पेट में कैंची छूट गई
कैंची ठहरी सरकारी
सरकार की तरह ही
अड़ियल और बहरी
चुपचाप पड़ी रही
पेट में गड़ी रही

डॉक्टर ने सरकारी फ़र्ज़ निभाया
ऑपरेशन थिएटर के बाहर
ये लिखकर टंगवाया
‘खाली पेट आइए
खाली पेट जाइए
जो मरीज़
जेब में या पेट में
कैंची लेकर जाएगा
उसको
पुलिस के हवाले किया जाएगा।’

पुलिस के डर से दीनू
इधर-उधर छिपता रहा
लेकिन दर्द को कहाँ छिपाए
दर्द की ताक़त तो
बढ़ती ही जाए
और दोबारा सरकारी अस्पताल
इसलिए न जाए
कहीं कैंची निकले
कुछ और न रह जाए
दीनू को
इसी बात का खटका
और इसी खटके ने
उसे
प्राइवेट क्लिनिक में जा पटका
सरकारी से गिरा
प्राइवेट में अटका।

प्राइवेट डॉक्टर ने
ऑपरेशन की फीस
सिर्फ़ दस हज़ार रुपए बताई
दीनू के पास धेला न पाई
उसकी कुल प्रॉपर्टी
एक कटोरा और एक चटाई
चटाई को नीचे बिछाए
-तो गद्दा
और ऊपर ओढ़े
-तो रजाई
दूने ने ही डॉक्टर को
एक सस्ती-सी युक्ति बताई
‘डॉक्टर साहब
पेट काटना महंगा है
तो पेट पर लात मारो
डॉक्टर की लात है हुज़ूर
कैंची निकलेगी ज़रूर
और हुज़ूर
कैंची भी आप ही रख लेना।’
डॉक्टर परेशान
बोला-
‘तू मरीज़ है या शैतान।’
अब डॉक्टर
दीनू का
निचोड़ेबल बिंदु ऑंकने लगा
दस हज़ार से
नीचे को टापने लगा
और दीनू बेचारा
हज़ार के नाम से ही
काँपने लगा

काँपते-काँपते
उठी एक दर्दीली कराह
धड़ाम की आवाज़
फिर एक ठण्डी आह
कैंची पेट से सरक कर
फर्श पर जा गिरी
दीनू बुदबुदाया
कितना दु:ख देती रही ससुरी।

कैंची से मुक्त दीनू
मारे ख़ुशी के नाचने लगा
और डॉक्टर को
कैंची का अपने आप निकल आना
काटने लगा
उसेन अपने
प्राइवेट ज्ञान का पिटारा खोला
और बोला-
‘इसे कहते हैं
डॉक्टरी का चमत्कार
बिना चीर-फाड़
कैंची कर दी बाहर।’

दीनू सकपकाया
‘हुज़ूर!
कैंची तो
अपने-आप आ गिरी
माँस गल गया
पेट में
संभालने की जान ही न रही’
डॉक्टर बोला-
‘अरे मूर्ख
ये गिरी नहीं…
गिराई है
तेरे पेट पर
ये स्टेथॉस्कोप घुमाया था
इसी के कारण बाहर आई है
कर दिया तेरा उपकार
अब ला दस हज़ार।’

दीनू मजबूर
क्लिनिक में हो गया
बंधुआ मजदूर
कहने को चपरासी
लगी थी
पूरे दस हज़ार की फाँसी
डॉक्टर ने
जल्द से जल्द
हिसाब चुकता किया
एक हफ्ते में ही
दीनू को कर्ज़ मुक्त किया।

पहले दिन
निकाली एक ऑंख
दूसरे दिन
दूसरी ऑंख साफ़
तीसरे दिन
हृदय का वाल्व
चौथे दिन गुर्दा
दीनू आधा ज़िन्दा
आधा मुर्दा
अगले दिन
दोनों कान
फिर कुछ और सामान
दीनू हो गया
स्पेयर पार्ट्स की दुकान
इस प्रकार
दीनू के अंग
एक-एक कर निकलते रहे
और उसके ये सस्ते पुर्ज़े
महंगे दाम पर
ऊँचे मरीज़ों को लगते रहे।

अब दीनू बदरंग
पूरा अंग-भंग
आख़िर उसका हृदय भी
किसी के काम आ गया
बाकी का दीनू
कटपीस के भाव चला गया
पंचतत्व में मिलने से पहले ही
दीनू
पूरा का पूरा
दूसरों में समा गया।

आपने देखी ना
दीनी की गत।
न आग, न धुऑं
राम नाम सत
लेकिन
डॉक्टर की चमक गई क़िस्मत
डॉक्टर, दीनू के पुर्जेकरण में
प्रत्यारोपण में
और समापन में
पूरे पाँच लाख कमा गया
और अब दीनू
मारुति वन थाउज़ेंड बन
क्लिनिक के आंगन में आ गया।

अब देखिए
दीनू का डिज़ाइन
-सुपर फाइन
दीनू की पीठ
हो गई मखमली सीट
दीनू के हृदय की धड़कन
हो गई फौलादी इंजन।

दीनू ने पकड़ ली
ज़माने की रफ्तार
ख़ुश है- दीनू पर सवार
डॉक्टर का परिवार
आधुनिक युग का कैसा चमत्कार
हॉर्न-सी बजती है
दीनू की पुकार
म्यूज़िकल हो गई
उसकी हाहाकार
टकसाली हो गया
दीनू का संहार।

कलयुगी सभ्यता का
सलोना विस्तार
इंसानी अंगों का
घिनौना व्यापार।

© Baghi Chacha : बाग़ी चाचा

 

Ajay Janamejay : अजय जनमेजय

 


 

नाम : अजय जनमेजय
जन्म : 28 नवम्बर 1955; हस्तिनापुर
शिक्षा : एमबीबीएस

प्रकाशन:-
1) सच सूली पर टँगने हैं
2) तुम्हारे बाद
3) अक्कड़-बक्कड़ हो-हो-हो
4) हरा समुंदर गोपी चंदर
5) ईचक दाना बीचक दाना
6) समय की शिला पर
7) बाल सुमनों के नाम
8) नन्हे पंख ऊँची उड़ान

निवास : बिजनौर


28 नवम्बर सन् 1955 को हस्तिनापुर, उत्तर प्रदेश में जन्मे अजय जनमेजय पेशे से चिकित्सक हैं। इस समय आपका कर्मक्षेत्र तथा निवास बिजनौर में है। डॉ. अजय जनमेजय बाल मनोविज्ञान के विशेषज्ञ हैं, कदाचित् यही कारण है कि आपकी कृतियों में बालोपयोगी साहित्य की बहुतायत है। बिना किसी आपाधापी के चुपचाप साहित्य साधना में संलग्न डॉ. अजय जनमेजय एक दर्जन से अधिक पुरस्कार और सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है। अनेक संकलनों में आपकी रचनाएँ तथा कृतित्व को संकलित किया गया है।

‘सच सूली पर टँगने हैं’, ‘तुम्हारे बाद’, ‘अक्कड़-बक्कड़ हो-हो-हो’, ‘हरा समुंदर गोपी चंदर’, ‘ईचक दाना बीचक दाना’, ‘समय की शिला पर’, ‘बाल सुमनों के नाम’ और ‘नन्हे पंख ऊँची उड़ान’ जैसे अनेक संग्रहों के साथ-साथ आपने अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों का संपादन भी किया है।

लोरियाँ, बालगीत, बाल कविताएँ, बाल कहानियाँ, ग़ज़ल और कविता समेत अनेक विधाओं में आपने लेखनी चलाई है। इसके अतिरिक्त बिजनौर की साहित्यिक धरोहर को सहेजने के लिए भी आप निरंतर प्रयासरत हैं।