मिलने को मिलता रहा ये सारा संसार
जिससे होना था हुआ एक नज़र में प्यार
© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल
मिलने को मिलता रहा ये सारा संसार
जिससे होना था हुआ एक नज़र में प्यार
© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल
जुगनू बोला चांद से, उलझ न यूँ बेकार।
मैंने अपनी रोशनी, पाई नहीं उधार॥
© Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य
सही दिशा में जो चले, हुए न कभी हताश
एक क़दम की चूक से होता सत्यानाश
© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल
नाम : नरेश शांडिल्य
जन्म : 15 अगस्त 1958 (दिल्ली)
शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिन्दी)
प्रकाशन
कुछ पानी कुछ आग
टुकड़ा-टुकड़ा ये ज़िन्दगी
दर्द जब हँसता है
मैं सदियों की प्यास
निवास : दिल्ली
15 अगस्त 1958 को दिल्ली में जन्मे नरेश शांडिल्य इस समय एक सशक्त दोहाकार के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। हिन्दी विषय से स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद बैंककर्मी के रूप में आपने आजीविका प्रारंभ की।
ख़ुद्दारी, संस्कृति और आत्मविश्वास से ओत-प्रोत आपकी रचनाएँ अपने चरम पर पहुँचते हुए दार्शनिक होती जाती हैं। ग़ज़ल, गीत, मुक्तछंद तथा दोहे आदि तमाम विधाओं में आपने अपनी लेखनी चलाई है। वर्तमान हिन्दी काव्य मंच पर तमाम संचालक आपके दोहों का प्रयोग करते देखे जा सकते हैं।
इस समय आप त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘अक्षरम् संगोष्ठी’ के संपादक हैं तथा प्रवासी भारतीयों की अंतरराष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘प्रवासी टुडे’ के रचनात्मक निदेशक हैं।
देश-विदेश में आपने अपनी कविताओं के माध्यम से श्रोताओं से सीधे तारतम्य स्थापित किया है। अनेक महत्तवपूर्ण सम्मान तथा पुरस्कार आपको प्राप्त हैं और साथ ही ‘टुकड़ा-टुकड़ा ये ज़िन्दगी’, ‘दर्द जब हँसता है’, ‘मैं सदियों की प्यास’ तथा ‘कुछ पानी कुछ आग’ के नाम से आपके काव्य संग्रह प्रकाशित हो
चुके हैं। इतना ही नहीं ‘नाटय प्रस्तुति में गीतों की सार्थकता’ विषय पर आपका एक शोधकार्य भी उपलब्ध है।
आप नाटय जगत् से भी जुड़े हैं। अनेक नाटय प्रस्तुतियों में आपने स्वयं अभिनय तो किया ही है साथ ही लगभग 20 नाटकों के लिए आपने 50 से अधिक गीत भी लिखे हैं।
आपकी पुस्तक ‘कुछ पानी कुछ आग’ की भूमिका में डॉ. बलदेव वंशी आपके विषय में लिखते हैं- ”कवि के स्वर में एक चुनौती भी है। निर्धन, उपेक्षित, उत्पीड़ित की पक्षधरता में वह दृढ़ता से सन्नध्द ही नहीं, ललकारता भी है- अपनी मानवीय संवेदना की ज़मीन पर खड़ा होकर- अलमस्त फ़क़ीर और कबीर के स्वरों में।
जुझारूपन, संघर्ष और चुनौती को मशाल की तरह उठाए कवि कबीरी-फ़क़ीरी दु:साहस में से बोलता है, जो अपने समय की अपने से बड़ी राजसी-साम्प्रदायिक, सामाजिक सत्ता-व्यवस्थाओं से भिड़ने से ज़रा भी संकोच नहीं करता।”
उनकी ग़ज़लों की प्रशंसा करते हुए वरिष्ठ कवि बालस्वरूप राही लिखते हैं- ”दोहा, गीत तथा नुक्कड़ कविता में पारंगत होने के कारण नरेश शांडिल्य को अपनी ग़ज़लों में इन विधाओं की विशेषताओं का पूरा-पूरा लाभ मिला है। वे हमें कहीं भी बनावटी अथवा ऊपरी नहीं लगतीं। उनकी ग़ज़लों में गीतों जैसी एकान्विति है। यह
नहीं कि एक शे’र गहरी पीड़ा का है तो दूसरा विलास-क्रीड़ा का। दोहों के अत्यंत सफल कवि होने के कारण उन्हें दोहों की सार्थक संक्षिप्तता का लाभ अपने शे’रों की बुनावट में मिला है।
सोता-सोता जागता सुनकर इसकी टोन
सपने में भी दीखता अब मोबाइल फोन
© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल
उसके चरणों की हुई सारी दुनिया दास
जिसने मन से ले लिया गौतम-सा सन्यास
© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल
तू पत्थर की ऐंठ है, मैं पानी की लोच।
तेरी अपनी सोच है, मेरी अपनी सोच॥
© Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य
अपने जीवन में मिला, जिसको जैसा संग
उसके चेह्रे पर मिले, उसी तरह के रंग
© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल
पीपल भी देता नहीं, अब तो शीतल छाँव
बदला-बदला लग रहा, क्यों पुरखों का गाँव
© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल
जल के कारण मत करो सागर का उपहास
सीप, शंख, मोती मिले तुम्हें इसी के पास
© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल