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ख़्वाब नाज़ुक़ थे

ख़्वाब नाज़ुक़ थे छू लेने से बिखर जाते थे
इसलिए हम उन्हें बिन छेड़े गुज़र जाते थे
उम्र भर पर्दा हटाया न गया रुख़ से कभी
पहली क़ोशिश में ही वो शर्म से मर जाते थे

© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी

 

सपने गीत बने

किसे पता है? अक्सर मेरे सपने गीत बने।

कुछ सपने मेलोँ जैसे हैँ कोई है सूने का सपना।
कभी कभी क्षमता से ऊँचा इन्द्रधनुष छूने का सपना।
जैसे हारी हुयी थकन का सपना जीत बने।

कमरे की खिड़की का परदा मैँने अरसे बाद हटाया,
खिड़की से चिपका बैठा था कब से पागल चाँद लजाया।
मै भी चाहूँ मेरा भी कुछ सुखद अतीत बने।

अगर गीत बनवाना हो तो तुम भी अपने सपने देना,
मुझे रात दिन हँसने रोने लिखने और तड़पने देना।
बस सपने ही दिये सभी ने जो भी मीत बने।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल