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किसी से बात कोई आजकल नहीं होती

किसी से बात कोई आजकल नहीं होती
इसीलिए तो मुक़म्म्ल ग़ज़ल नहीं होती

ग़ज़ल-सी लगती है लेकिन ग़ज़ल नहीं होती
सभी की ज़िंदगी खिलता कँवल नहीं होती

तमाम उम्र तज़ुर्बात ये सिखाते हैं
कोई भी राह शुरु में सहल नहीं होती

मुझे भी उससे कोई बात अब नहीं करनी
अब उसकी ओर से जब तक पहल नहीं होती

वो जब भी हँसती है कितनी उदास लगती है
वो इक पहेली है जो मुझसे हल नहीं होती

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

ओस की बूँदें पड़ीं तो

ओस की बूँदें पड़ीं तो पत्तियाँ ख़ुश हो गईं
फूल कुछ ऐसे खिले कि टहनियाँ ख़ुश हो गईं

बेख़ुदी में दिन तेरे आने के यूँ ही गिन लिये
एक पल को यूँ लगा कि उंगलियाँ ख़ुश हो गईं

देखकर उसकी उदासी, अनमनी थीं वादियाँ
खिलखिलाकर वो हँसा तो वादियाँ ख़ुश हो गईं

आँसुओं में भीगे मेरे शब्द जैसे हँस पड़े
तुमने होठों से छुआ तो चिट्ठियाँ ख़ुश हो गईं

साहिलों पर दूर तक चुपचाप बिखरी थीं जहाँ
छोटे बच्चों ने चुनी तो सीपीयाँ ख़ुश हो गईं

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी