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रोज़ मिलता है वनवास

राम इस दौर का बुढ़ापे का सहारा बने
रहती है बस यही आस दशरथ को
तृष्णा की मंथरा दरार डाल दे न कहीं
सालता है यही अहसास दशरथ को
लाडलों ने जाने कैसा फ़रमान रख दिया
आज फिर देखा है उदास दशरथ को
राम को मिला था वनवास युग बीत गए
रोज़ मिलता है वनवास दशरथ को

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

तब देखना

दुनिया बनाने वाले आजकल दुनिया ये
हो गई है कितनी ख़राब तब देखना
वासना का तन से ख़ुमार जब उतरेगा
पाप और पुण्य का हिसाब तब देखना
कितने गिरे हैं और कितने गिरेंगे हम
अभी मत देखिए जनाब तब देखना
बाप और भाइयों के बीच चौकड़ी में बैठ
बेटियाँ परोसेंगी शराब तब देखना

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

दादी और नानियाँ

तितली के टूटे हुए पंख, सीपियों के शंख
और किसी फटे हुए चित्र की निशानियाँ
सपनों में सजते हुए वो शीशे के महल
और उन महलों में राजा और रानियाँ
रात-दिन बेशुमार ज़िन्दगी की रफ्तार
ले के कहाँ आ गईं ये हमको जवानियाँ
किस को पता है ओढ़ के उदासी जाने किस
कोने में पड़ी हुई हैं दादी और नानियाँ

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

लोन

लोन से लिया है फ़्लैट, लोन से ख़रीदी कार
सूई भी ख़रीदी न नक़द मेरे राम जी
लोन से पढ़ाए बच्चे, लोन से ख़रीदे कच्छे
मांगी नहीं यारों से मदद मेरे राम जी
क़िस्त न भरी तो गुण्डे ले गए उठा के कार
घटनी थी घटना दुखद मेरे राम जी
गमलों में काँटेदार कैक्टस उगाए मैंने
पाऊँ अब कहाँ से शहद मेरे राम जी

© Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’

 

हम क़ामयाब हो गए

हौले-हौले ख्वाहिशों की उम्र बढ़ने लगी तो
दिल में जवान कितने ही ख्वाब हो गए
वक्त क़ी शिक़ायतों पे रब की इनायतें थीं
हमने जो देखे सपने ग़ुलाब हो गए
दुनिया ने रख दिए पग-पग पे सवाल
फिर भी इरादे सभी लाजवाब हो गए
ज़िन्दगी में और तो वसीला कुछ भी नहीं था
माँ ने दी दुआएँ हम क़ामयाब हो गए

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

मन मस्त हुआ

आदि से अनूप हूँ मैं, तेरा ही स्वरूप हूँ मैं
मेरी भी कथाएँ हैं अनन्त मेरे राम जी
लागी वो लगन तुझसे कि मन मस्त हुआ
दृग में समा गया दिगन्त मेरे राम जी
सपनों में आ के कल बोले मेरी बुढ़िया से
बाल-ब्रह्मचारी हनुमन्त मेरे राम जी
लेता है धरा पे अवतार जाके सदियों में
‘अल्हड़’ सरीखा कोई सन्त मेरे राम जी

© Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’

 

आबरू बहन-बेटियों की

दूषित विचारों और संस्कारों में अना की
कल जब होगी तकरार तब देखना
पैसे के नशे में मान-मर्यादा बेचने की
घटनाएँ होंगी बार-बार तब देखना
ख़ुद को अगर न संभाला तो कहानी होगी
और भी ज़ियादा दुष्वार तब देखना
रू-ब-रू हमारे आबरू बहन बेटियों की
सड़कों पे होगी तार-तार तब देखना

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

ज़िन्दगी हिसाब में चली गई

बचपन रेल-वेल-खेल में निकल गया
चढ़ती जवानी किसी ख्वाब में चली गई
कुछ पल सजने-सँवरने के नाम गए
और कुछ झूठे हाव-भाव में चली गई
सही व ग़लत के मुग़ालते में गई कुछ
कुछ भावनाओं के बहाव में चली गई
कुछ लेन-देन खाने-पीने में निकल गई
और बाक़ी ज़िन्दगी हिसाब में चली गई

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

दिल्ली

दिल्ली तो करोड़ों दिल वालों की नगरिया है
कोई ले दिमाग़ से क्यों काम मेरे राम जी
भूले से, यहाँ जो चला आए एक बार कोई
जाने का कभी न लेगा नाम मेरे राम जी
पाँव रखने को मेट्रो रेल में जगह कहाँ
जाम हुईं सड़कें तमाम मेरे राम जी
जाम से भला क्यों घबराएँ कार वाले, यहाँ
कारों में छलकते हैं जाम मेरे राम जी

© Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’