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ये क्या जगह है दोस्तो, ये कौन-सा दयार है

ये क्या जगह है दोस्तो, ये कौन-सा दयार है
हद्द-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है

ये किस मुकाम पर हयात मुझको ले के आ गई
न बस ख़ुशी पे है जहाँ, न ग़म पे इख़्तियार है

तमाम उम्र का हिसाब मांगती है ज़िन्दगी
ये मेरा दिल कहे तो क्या, ये ख़ुद से शर्मसार है

बुला रहा क्या कोई मुझको चिलमनों के उस तरफ़
मेरे लिये भी क्या कोई उदास बेक़रार है

न जिसकी शक्ल है कोई, न जिसका नाम है कोई
इक ऐसी शै का क्यों हमें अज़ल से इंतज़ार है

फ़िल्म : उमराव जान (1981)
संगीतकार : ख़ैयाम
स्वर : आशा भोंसले

© Akhlaq Muhhamad Khan Shaharyar : अख़लाक़ मुहम्मद खान ‘शहरयार’

 

Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

नाम : चरणजीत चरण
जन्म : 13 जून 1975
शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिंदी तथा राजनीति शास्त्र)

प्रकाशन
सरगोशियाँ; पाँखी प्रकाशन
हसरतों के आईने; पाँखी प्रकाशन

निवास :ग्रेटर नोएडा

हिंदी काव्य मंच के भविष्य का चेहरा जिन चंद रचनाकारों से मिलकर तैयार होता है, उनमें से चरणजीत एक अहम् नाम है। देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा के छोटे से गाँव रन्हेरा में जन्मे चरणजीत हिंदी तथा राजनीति शास्त्र विषयों में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई भी
की। वर्ष 2009 में एन चन्द्रा द्वारा निर्मित फिल्म ‘ये मेरा इंडिया’ और 2011 में संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘माई फ्रैंड पिंटो’ में भी चरण ने गीत लिखे हैं। वर्तमान में चरणजीत उत्तर प्रदेश सरकार में अध्यापन कार्य से जुड़े हैं।
चरणजीत ‘चरण’ ग़ज़ल और छंदबद्ध कविता के ऐसे माहिर हस्ताक्षर हैं, जिन्हें सुनना स्वयं में एक अनोखा अहसास है। जब वे मंच पर छंद पढ़ रहे होते हैं तो प्रवाह का एक ऐसा समा बंधता है कि पूरे वातावरण में घनाक्षरी गूंजने लगता है। उनकी कविता में वर्तमान परिप्रेक्ष्य की विडंबनाओं पर तीखा कटाक्ष तो है ही, साथ ही
साथ सांस्कृतिक अवमूल्यन के प्रति एक गहरी चिंता भी है। वे सशक्त रूप में अपने गीतों के माध्यम से रूढ़ियों पर प्रहार भी करना जानते हैं और शालीनता के साथ गंभीर मुद्दों पर प्रश्न भी उठा सकते हैं।

 

नववर्ष की पहली किरण

ख़ुशियों भरा संसार दे, नववर्ष की पहली किरण
आनंद का उपहार दे, नववर्ष की पहली किरण

दुनिया की अंधी दौड़ में, कुछ दिल्लगी के पल मिले
सबको ही अनुपम प्यार दें, नववर्ष की पहली किरण

जर्जर हुए बदले अधर, नववर्ष की पहली किरण
नव चेतना, दे नया स्वर, नववर्ष की पहली किरण

अब आ चढ़ें नव कर्मरथ पर हर चिरंतन साधना
इस बुद्धि को कर दे प्रखर, नववर्ष की पहली किरण

सबको अटल विश्वास दे, नववर्ष की पहली किरण
नवदेह में नवश्वास दे, नववर्ष की पहली किरण

इस अवनि तल पर उतरकर, अब कर दे रौशन ये फिज़ा
उल्लास ही उल्लास दे, नववर्ष की पहली किरण

अब आ रही है मनोरम, नववर्ष की पहली किरण
यह चीरती अज्ञान तम, नववर्ष की पहली किरण

मैं छंद तुझ पर क्या लिखूँ ‘अद्भुत’ कहूँ इतना ही बस
सुस्वागतम सुस्वागतम, नववर्ष की पहली किरण

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

सितम इस पार है

सितम इस पार है जो भी वही उस पार हो शायद
उधर भी राहे उल्फ़त में कोई दीवार हो शायद

कभी ये सोचकर हमने न की कोशिश यक़ीं मानो
हमारे जीतने में भी हमारी हार हो शायद

नहीं रखता मरासिम मैं गुलों से सोचकर ये ही
लबों पर जिसके नज़र में ख़ार हो शायद

मुझे इंक़ार कब यारों है अपनी हक़ परस्ती से
मगर ये सोचकर चुप हूँ, किसी पर बार हो शायद

लबों पर ज़र्द ख़ामोशी सजाकर रात बैठी है
कोई जुगनू चमकने को अभी तैयार हो शायद

गिरी है बूंद शबनम की अभी इक गुल की ऑंखों से
ये मुमक़िन है कहीं कोई कली बीमार हो शायद

यहाँ ये सोचकर सबने ‘चरन’ की है पज़ीराई
ग़ुनाहों का यहाँ पर भी कोई बाज़ार हो शायद

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

कोई नहीं

ना ही मंज़िल, रास्ता कोई नहीं
सच है फिर मेरा ख़ुदा कोई नहीं

है बड़ा ये गाँव भी, वो गाँव भी
तीन रंगों से बड़ा कोई नहीं

सब गले का हार बन बैठे मगर
हाथ की लाठी बना कोई नहीं

ज़िन्दगी से दूरियाँ सिमटी ज़रूर
मौत से भी फ़ासला कोई नहीं

कुछ न कुछ होने का सबको इल्म है
इस शहर में सिरफिरा कोई नहीं

ना ही आँसू, दर्द है, ना बेबसी
ज़िन्दगी में अब मज़ा कोई नहीं

उसको ‘अद्भुत’ सिर्फ़ सच से प्यार है
उसके ज़ख़्मों की दवा कोई नहीं

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

कहीं जिंदगी में हम-तुम

कहीं जिंदगी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी गीत तुम सुनाओ, कभी गीत हम सुनाएँ !

आकाश गुनगुनाए, धरती न बोल पाए;
जो भी हो जिसको कहना, कभी सामने तो आए;

कहीं यामिनी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी दीप तुम जलाओ, कभी दीप हम जलाएँ !

नहीं चाहते सितारे, कभी चाँदनी पधारे;
रहे मेघ सिर पटकते, सौदामिनी के द्वारे;

कहीं चाँदनी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी तुम हमें मनाओ, कभी हम तुम्हें मनाएँ !

कह तक न पाऊँ ऐसा उन्माद भी नहीं है;
कुछ कहते डर रहे हैं कुछ याद भी नहीं है;

कहीं बेबसी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी याद तुम न आओ, कभी याद हम न आएँ !

© Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’

 

ऐसे हालात आने लगे हैं

ऐसे हालात आने लगे हैं
चुटकुले भी रुलाने लगे हैं

एक कविता जमाने की ख़ातिर
उनको कितने ज़माने लगे हैं

होश की बात करने लगा हूँ
आप जब से पिलाने लगे हैं

तुमको पाकर लगा ज़िंदगी में
हाथ मेरे ख़ज़ाने लगे हैं

हो न जाऊँ कहीं बेसहारा
मेरे बच्चे कमाने लगे हैं

© Deepak Gupta : दीपक गुप्ता

 

हमने तो बस ग़ज़ल कही है

हमने तो बस ग़ज़ल कही है, देखो जी
तुम जानो क्या ग़लत-सही है, देखो जी

अक़्ल नहीं वो, अदब नहीं वो, हाँ फिर भी
हमने दिल की व्यथा कही है, देखो जी

सबकी अपनी अलग-अलग तासीरें हैं
दूध अलग है, अलग दही है, देखो जी

ठौर-ठिकाना बदल लिया हमने बेशक़
तौर-तरीक़ा मगर वही है, देखो जी

बदलेगा फिर समां बहारें आएंगी
डाली-डाली कुहुक रही है, देखो जी

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

धुआं

हरेक सांस में आता है गाम-गाम धुआं
बदल के रख दो मेरी जिंदगी का नाम धुआं

बहुत करीब है जैसे घुटन की रात कोई
उड़ा रही है मेरी बेबसी की शाम धुआं

हरेक सम्त है कुहरा घना जिधर देखो
हुआ है आज तो जैसे कि बेलगाम धुआं

किसी के अश्क बहे बोझ कम हुआ दिल का
चलो कि आज तो आया किसी के काम धुआं

कहीं पे बैठ के कुछ दम लगा कि चैन मिले
उड़ा कभी-कभी वहशी जहां के नाम धुआं

वो कौन लोग थे जो खो गए खलाओं में
गरीब जिस्म का है आखरी मुकाम धुआं

कहां -कहां की फ़ज़ा याद आ गयी गौतम
ब-वक्ते-शाम जो देखा है नंगे-शाम धुआं

© Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम

 

किरदार खो बैठे

दिलों को जोड़ने वाला सुनहरा तार खो बैठे
कहानी कहते-कहते हम कई किरदार खो बैठे

हमें महसूस जो होता है खुल के कह नहीं पाते
कलम तो है वही लेकिन कलम की धार खो बैठे

हरेक सौदा मुनाफे में पटाना चाहता है वो
मगर डरता भी है, ऐसा न हो, बाजार खो बैठे

कभी ऐसी हवा आई कि सब जंगल दहक उट्ठे
कभी बारिश हुई ऐसी कि हम अंगार खो बैठे

नशा शोहरत का पर्वत से गिरा देता है खाई में
खुद अपने फ़न के जंगल में कई फ़नकार खो बैठे

खुदा होता तो मिल जाता मगर उसके तवक्को में
नजर के सामने हासिल था जो संसार, खो बैठे

मेरी यादों के दफ्तर में कई ऐसे मुसाफिर हैं
चले हमराह लेकिन राह में रफ्तार खो बैठे

हमारे सामने अब धूप है, बारिश है, आंधी है
कि जिसकी छांव में बैठे थे वो दीवार खो बैठे

अगर सुर से मिलाओ सुर तो फिर संगीत बन जाए
वो पायल क्या जरा बजते ही जो झंकार खो बैठे.

© Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम