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हँसते-हँसाते रहे

ज़िंदगी का सफ़र यूँ बिताते रहे
आंधियों में दिये हम जलाते रहे
आँसुओं के नगर में कटी ज़िंदगी
हर घड़ी फिर भी हँसते-हँसाते रहे

© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल

 

विकास

एक कमरा था
जिसमें मैं रहता था
माँ-बाप के संग
घर बड़ा था
इसलिए इस कमी को
पूरा करने के लिए
मेहमान बुला लेते थे हम!

फिर विकास का फैलाव आया
विकास उस कमरे में नहीं समा पाया
जो चादर पूरे परिवार के लिए बड़ी पड़ती थी
उस चादर से बड़े हो गए
हमारे हर एक के पाँव
लोग झूठ कहते हैं
कि दीवारों में दरारें पड़ती हैं
हक़ीक़त यही
कि जब दरारें पड़ती हैं
तब दीवारें बनती हैं!
पहले हम सब लोग दीवारों के बीच में रहते थे
अब हमारे बीच में दीवारें आ गईं
यह समृध्दि मुझे पता नहीं कहाँ पहुँचा गई
पहले मैं माँ-बाप के साथ रहता था
अब माँ-बाप मेरे साथ रहते हैं

फिर हमने बना लिया एक मकान
एक कमरा अपने लिए
एक-एक कमरा बच्चों के लिए
एक वो छोटा-सा ड्राइंगरूम
उन लोगों के लिए जो मेरे आगे हाथ जोड़ते थे
एक वो अन्दर बड़ा-सा ड्राइंगरूम
उन लोगों के लिए
जिनके आगे मैं हाथ जोड़ता हूँ

पहले मैं फुसफुसाता था
तो घर के लोग जाग जाते थे
मैं करवट भी बदलता था
तो घर के लोग सो नहीं पाते थे
और अब!
जिन दरारों की वहज से दीवारें बनी थीं
उन दीवारों में भी दरारें पड़ गई हैं।
अब मैं चीख़ता हूँ
तो बग़ल के कमरे से
ठहाके की आवाज़ सुनाई देती है
और मैं सोच नहीं पाता हूँ
कि मेरी चीख़ की वजह से
वहाँ ठहाके लग रहे हैं
या उन ठहाकों की वजह से
मैं चीख रहा हूँ!

आदमी पहुँच गया हैं चांद तक
पहुँचना चाहता है मंगल तक
पर नहीं पहुँच पाता सगे भाई के दरवाज़े तक
अब हमारा पता तो एक रहता है
पर हमें एक-दूसरे का पता नहीं रहता

और आज मैं सोचता हूँ
जिस समृध्दि की ऊँचाई पर मैं बैठा हूँ
उसके लिए मैंने कितनी बड़ी खोदी हैं खाइयाँ

अब मुझे अपने बाप की बेटी से
अपनी बेटी अच्छी लगती है
अब मुझे अपने बाप के बेटे से
अपना बेटा अच्छा लगता है
पहले मैं माँ-बाप के साथ रहता था
अब माँ-बाप मेरे साथ रहते हैं
अब मेरा बेटा भी कमा रहा है
कल मुझे उसके साथ रहना पड़ेगा
और हक़ीक़त यही है दोस्तों
तमाचा मैंने मारा है
तमाचा मुझे खाना भी पड़ेगा

© Surendra Sharma : सुरेंद्र शर्मा

 

Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल

नाम : प्रवीण शुक्ल
जन्म : 7 जून 1970 (पिलखुवा)
शिक्षा : पीएच.डी.; स्नातकोत्तर (अर्थशास्त्र); बी.एड.

पुरस्कार एवं सम्मान
1) हिंदी गौरव सम्मान 1998
2) अट्टहास युवा रचनाकार सम्मान 2004
3) ओमप्रकाश आदित्य सम्मान 2006
4) काका हाथरसी पुरस्कार 2010

प्रकाशन
स्वर अहसासों के (काव्य संकलन)
कहाँ ये कहाँ वो (काव्य संकलन)
हँसते-हँसाते रहो (काव्य संकलन)
तुम्हारी आँख के आँसू (काव्य संकलन)
गांधी और गांधीगिरी
सफ़र बादलों का (यात्रा वृत्तांत)
हर हाल में ख़ुश हैं (अल्हड़ बीकानेरी की रचनाओं का संकलन)
इक प्यार का नग़मा है (संतोष आनंद की रचनाओं का संकलन)
मुहब्बत है क्या चीज़! (संतोष आनंद की रचनाओं का संकलन)
आइना अच्छा लगा (ग़ज़ल संग्रह)
नेताजी का चुनावी दौरा (व्यंग्य लेख संकलन)

निवास : नई दिल्ली

प्रवीण शुक्ल दिल्ली के एक विद्यालय में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में सेवारत हैं। आपके पिता श्री ब्रज शुक्ल ‘घायल’ भी अपने काव्यकर्म के लिए जाने जाते हैं।

आप वर्तमान समय में हिंदी की वाचिक परंपरा के कवियों में अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं। हास्य, व्यंग्य, गीत, ग़ज़ल और अन्य तमाम विधाएँ आपके सृजन के दायरे में आती हैं। तमाम जनसंचार माध्यमों से आपकी रचनाएँ, शोधपत्र तथा साक्षात्कार प्रसारित-प्रकाशित हो चुके हैं। आपने बैंकाक, मस्कट, दुबई, भूटान और यूनाइटेड किंग्डम जैसे देशों में अपनी काव्य-पताका फहराई है।

आपकी काव्य प्रतिभा के आधार पर आपके विषय में पद्मश्री गोपालदास ‘नीरज’ ने ‘तुम्हारी आँख के आँसू’ की भूमिका में लिखा है कि- “प्रवीण शुक्ल ने अपनी काव्य-प्रतिभा का जो स्वरूप प्रस्तुत किया है, उसे देखने के बाद मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूँ कि उनके पास नया सोच, नया कथ्य, नया बिम्ब सभी कुछ अनूठा है। यह युवा कवि आगे चलकर साहित्य-जगत को कोई ऐसी कृति अवश्य देगा जिससे वह स्वयं तो बड़ा कवि माना ही जायेगा, साथ ही उसकी इस कृति से साहित्य-जगत भी गौरवान्वित होगा।”

 

Surendra Sharma : सुरेंद्र शर्मा

नाम : सुरेंद्र शर्मा
जन्म : 29 जुलाई 1945; नांगल चौधरी, हरियाणा
शिक्षा : स्नातक (वाणिज्य)

पुरस्कार एवं सम्मान
पद्मश्री

प्रकाशन
मानसरोवर के कौवे (व्यंग्य लेख संग्रह)
बुद्धिमानों की मूर्खताएं (व्यंग्य लेख संग्रह)
बड़े-बड़ों के उत्पात (व्यंग्य लेख संग्रह)
निवास : नई दिल्ली

सुरेंद्र शर्मा भारतीय हास्य का एक पर्याय हैं. भाषा की कमज़ोरियों को शक्ति के रूप में प्रयोग करके अपनी सहज भाव-भंगिमाओं के साथ मंच पर प्रस्तुत करने में सुरेंद्र शर्मा जी माहिर हैं. हरियाणा और राजस्थान के क्षेत्रीय भाषाई सौंदर्य का सम्मिश्रण आपकी रचनाओं का अहम् हिस्सा है. हास्य कवि के रूप में पूरी दुनिया में
लोकप्रिय हुए शर्मा जी एक गंभीर दार्शनिक और श्रेष्ठ गीतकार भी हैं. व्यंग्य-बोध और हास्य-बोध के साथ-साथ आपका संवेदना-बोध भी परिष्कृत है.

 

Arun Gemini : अरुण जैमिनी


नाम : अरुण जैमिनी
जन्म : 22 अप्रैल 1959; नई दिल्ली
शिक्षा : स्नातकोत्तर (जनसंचार एवं पत्रकारिता)

पुरस्कार एवं सम्मान
हरियाणा गौरव
काका हाथरसी सम्मान
टेपा सम्मान
ओमप्रकाश आदित्य सम्मान

प्रकाशन
फिलहाल इतना ही
हास्य व्यंग्य की शिखर कवितायेँ

निवास : नई दिल्ली


22 अप्रैल 1959 को जन्मे अरुण जैमिनी को कविता की समझ और कविता की प्रस्तुति का कौशल विरासत में मिला। पारिवारिक माहौल में कविता इतनी रची बसी थी कि कब वे देश के लोकप्रिय कवि हो गए, पता ही न चला। आपके पिता श्री जैमिनी हरियाणवी हिन्दी कविता की वाचिक परम्परा में हास्य विधा के श्रेष्ठ हस्ताक्षर माने जाते हैं। उन्हीं की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, हरियाणवी लोक शैली को आधार बनाकर विशुद्ध हास्य से ज़रा-सा आगे बढ़ते हुए व्यंग्य की रेखा पर खड़े होकर आप काव्य रचना करते हैं। मंचीय प्रस्तुति और प्रत्युत्पन्न मति के आधार पर आप हास्य कविता के वर्तमान दौर की प्रथम पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं।
हास्य की फुलझड़ियों के माध्यम से घण्टों श्रोताओं को बांधने का हुनर आपके व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है। बेहतरीन मंच-संचालन तथा तर्काधारित त्वरित संवाद आपके काव्य-पाठ को अतीव रोचक बना देता है।
आपकी विधिवत शिक्षा स्नातकोत्तर तक हुई। पूरे भारत के साथ ही विदेशों में भी दर्जनों कवि-सम्मेलन में आपने काव्य पाठ किया है। ओमप्रकाश आदित्य सम्मान और काका हाथरसी हास्य रत्न पुरस्कार के साथ अनेक पुरस्कार व सम्मान आपके खाते में दर्ज हैं। आपका एक काव्य संग्रह ‘फ़िलहाल इतना ही’ के नाम से बाज़ार में उपलब्ध है। हास्य के पाताल से प्रारंभ होकर दर्शन, राष्ट्रभक्ति और संवेदना के चरम तक पहुँचने वाला आपका बौद्धिक कॅनवास आपको अन्य हास्य कवियों से अलग करता है।

Aash Karan Atal : आशकरण अटल


नाम : आशकरण अटल
जन्म : 28 अक्टूबर 1945
शिक्षा :उच्च माध्यमिक

पुरस्कार एवं सम्मान
1) काका हाथरसी हास्य रत्न पुरस्कार (हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार) 2008
2) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार (महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी) 2008-09
3) काव्य शिखर सम्मान (वाह-वाह क्या बात है, सब टीवी) 2013

प्रकाशन
1) हम क्या समझते नहीं हैं; काव्य-संग्रह
2) फिल्म पुराण; व्यंग्य-संग्रह
3) ढाई आखर काव्य के; काव्य-संग्रह
4) साहब बाथरूम में हैं; व्यंग्य संग्रह
5) हास्य-व्यंग्य की आडियो सीडी; राजश्री मीडिया

निवास : मुम्बई