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समय का फेर

समय का फेर
कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर
कैसा विकट समय का फेर
कहलाते हम- बीकानेरी
कभी न देखा- बीकानेर

जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में
है जो रेवाड़ी के पास
पर हरियाणा के यारों ने
कभी न हमको डाली घास

हास्य-व्यंग्य के कवियों में
लासानी समझे जाते हैं
हरियाणवी पूत हैं-
राजस्थानी समझे जाते हैं

© Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’

 

सावित्री

पक्की ऑडिटर थी सावित्री
क्वेरी पर क्वेरी कर के
पकड़ ही ली यमराज की इर्रेगुलरिटी
आख़िर करा ही ली
अपने हसबैण्ड की सोल की रिकवरी
इसको कहते हैं एफिशिएंसी!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता

 

गुरु और शिष्य

गुरु ने चेले से कहा लेटे-लेटे-
कि उठ के पता लगाओ
बरसात हो रही है या नहीं बेटे
तो चेले ने कहा-
ये बिल्ली अभी-अभी बहार से आई है
इसके ऊपर हाथ फेर कर देख लीजिये
अगर भीगी हुई हो तो
बरसात हो रही है समझ लीजिये।

गुरु ने दूसरा काम कहा
कि सोने का समय हुआ
ज़रा दीया तो बुझा दे बचुआ
बचुआ बोला-
आप आंखें बंद कर लीजिये
दीया बुझ गया समझ लीजिये।

अंत में गुरु ने कहा हारकर
कि उठ किवाड़ तो बंद कर
तो शिष्य ने कहा कि गुरुवर
थोड़ा तो न्याय कीजिये
दो काम मैंने किये हैं
एक काम तो आप भी कर दीजिये।

© Aash Karan Atal : आशकरण अटल