हसरतें दिल में दबाना आ गया
प्यास अश्कों से बुझाना आ गया
मैं ख़ुशी की चाह भी क्यूँ कर करूँ
जब ग़मों में मुस्कुराना आ गया
उस हसीं मासूमियत को देखकर
आइने को भी लजाना आ गया
जब से हम मयख़ाने में जाने लगे
क़दमों को भी डगमगाना आ गया
देखते ही मुझको सब कहने लगे
आ गया, उसका दीवाना आ गया
इंसान है इंसानियत दिखती नहीं
क्या कहें कैसा ज़माना आ गया
मुस्कुरा कर कीजिए मुझको विदा
अब ‘अगम’ अपना ठिकाना आ गया
© Anurag Shukla Agam : अनुराग शुक्ला ‘अगम’