मानुष हौं तो वही रसखान, बसौं संग गोकुल गाँव के ग्वारन
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मँझारन
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरि छत्र पुरन्दर धारन
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिन्दि कूल कदम्ब की डारन
© Raskhan : रसखान
मानुष हौं तो वही रसखान, बसौं संग गोकुल गाँव के ग्वारन
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मँझारन
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरि छत्र पुरन्दर धारन
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिन्दि कूल कदम्ब की डारन
© Raskhan : रसखान
भुरभुरे आवरण को
लिजलिजाते बरसाती कीड़े
समझते हैं दुर्भेद्य कवच!
इन्हीं अनोखे खिलौनों से
खेलते हैं नटखट बालक
बहुधा करते हैं छेड़छाड़
और फेंक देते हैं कहीं के कहीं
हज़ारों तो बूट तले दब-पिस जाया करते हैं
अचरज की बात
वासुदेव का पाञ्चजन्य
जिसके उद्धोष से
आतताइयों के अन्तर दहल जाते थे
-इसी परिवार
इन्हीं घोंघों का पूर्वज रहा था कभी!
© Jagdish Savita : जगदीश सविता
करि की चुराई चाल सिंह को चुरायो लंक
दूध को चुरायो रंग, नासा चोरी कीर की
पिक को चुरायो बैन, मृग को चुरायो नैन
दसन अनार, हाँसी बीजुरी गँभीर की
कहे कवे ‘बेनी’ बेनी व्याल की चुराय लीनी
रति रति सोभा सब रति के सरीर की
अब तो कन्हैया जी को चित हू चुराय लीनो
चोरटी है गोरटी या छोरटी अहीर की
© Beni Prasad Beni : बेनी प्रसाद बेनी
इक गोपी लड़ती फिरे, माखन लिया चुराय
दूजी बैठी रो रही, छिना न माखन, हाय
© Yogesh Chhibbar Anand : योगेश छिब्बर ‘आनन्द’
सेस महेस, गनेस, दिनेस, सुरेसहु जाहिं निरन्तर गावैं
जाहि अनादि, अनन्त अखंड, अछेद, अभेद सुवेद बतावैं
नारद से सुक व्यास रटैं, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावैं
© Raskhan : रसखान
पिया तुम्हारा रूप है, कैसा साहूकार
नैना गिरवी रख लिये, दरस दिया इक बार
© Yogesh Chhibbar Anand : योगेश छिब्बर ‘आनन्द’