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रेत के टीले

ज़िंदगी की धूप में
रेत से तपते रहे
सोने से चमकते रहे
तप के सोना बने
न कुन्दन

हर शाम ढले फिर से
रेत के ढेरों में बदलते रहे

हवा हमजोली-सी
ले उड़ी आसमानों में
रुकी
तो फिर आ गिरे
ज़मीन पर

हम ख़ाक़ थे
और ख़ाक़ में मिलते रहे

ज़िंदगी की धूप में
रेत से तपते रहे
सोने से चमकते रहे।

© Vivek Mishra : विवेक मिश्र

 

यथोचित

पुराने वस्त्र को
सम्मान दिया जा सकता है
पर ओढ़ा नहीं जा सकता
ओढ़ा वही जाएगा
जो बचा सकता है
सर्दी से
धूप से
वर्षा से
आंधी से

फूल को चाहिए कि
वह कली को स्थान दे
कली को चाहिए कि
वह फूल को सम्मान दे
पतझड़ को रोका नहीं जा सकता
कोंपल को टोका नहीं जा सकता

© Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ

 

जिल्द बंधाने में कटी

काँपती लौ, ये स्याही, ये धुआँ, ये काजल
उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब
ज़िन्दगी गीत थी पर जिल्द बंधाने में कटी

© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’

 

इतिहास

आदमी मर गया कभी का
पीढ़ियाँ ज़िन्दा हैं
सूरज बुझ जाएगा एक दिन
पर आकाश अमर है
सूरज के बिना
वह आकाश कैसा होगा!

Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर

 

सब नज़र के साथ थे

सब रहे ख़ुश्बू की जानिब, सब नज़र के साथ थे
और हम उलझे हुए कुछ मसअलों के साथ थे

सच, नहीं मालूम क्या था, सबका मत था मुख्तलिफ़
कुछ नज़र के साथ थे, कुछ आइनों के साथ थे

हो रही है जाँच लावारिस शबों की आजकल
रहज़नों के साथ थे या रहबरों के साथ थे

ऐ मिरे हमदम बता गुज़रे जो अब तक हादिसे
रास्तों के साथ थे या मंज़िलों के साथ थे

एक घर के दरमियाँ भी लोग थे कितने ज़ुदा
कुछ गुलों के साथ थे, कुछ नश्तरों के साथ थे

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

स्वयं से संवाद

साथ किसी के रहना लेकिन
खुद को खुद से दूर न रखना।

रेगिस्तानों में उगते हैं
अनबोये काँटों के जंगल,
भीतर एक नदी होगी तो
कलकल कलकल होगी हलचल,

जो प्यासे सदियों से बंधक
अब उनको मजबूर न रखना।

खण्डहरों ने रोज बताया
सारे किले ढहा करते हैं,
कोशिश से सब कुछ संभव है
सच ही लोग कहा करते हैं,

भले दरक जाना बाहर से
मन को चकनाचूर न रखना।

पहले से होता आया है
आगे भी होता जायेगा,
अंगारों के घर से अक्सर
फूलों को न्योता आयेगा,

आग दिखाना नक्कारों को
शोलों पर संतूर न रखना।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल

 

शरारत

अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई
आप मत पूछिए क्या हम पे सफ़र में गुज़री
था लुटेरों का जहाँ गाँव, वहीं रात हुई

© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’

 

कोई मेरे साथ चले

कोई मेरे साथ चले
मैंने कब कहा
कोई मेरे साथ चले
चाहा जरुर!

अक्सर दरख्तों के लिये
जूते सिलवा लाया
और उनके पास खडा रहा
वे अपनी हरीयाली
अपने फूल फूल पर इतराते
अपनी चिडियों में उलझे रहे

मैं आगे बढ गया
अपने पैरों को
उनकी तरह
जडों में नहीं बदल पाया

यह जानते हुए भी
कि आगे बढना
निरंतर कुछ खोते जाना
और अकेले होते जाना है
मैं यहाँ तक आ गया हूँ
जहाँ दरख्तों की लंबी छायाएं
मुझे घेरे हुए हैं……

किसी साथ के
या डूबते सूरज के कारण
मुझे नहीं मालूम
मुझे
और आगे जाना है
कोई मेरे साथ चले
मैंने कब कहा
चाहा जरुर!

© Sarveshwar Dayal Saxena : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

 

महफ़िल में मेरा ज़िक्र मेरे बाद हो न हो

महफ़िल में मेरा ज़िक्र मेरे बाद हो न हो
दुनिया को मेरा नाम तलक याद हो न हो

है वक़्त मेहरबान जो करना है कर अभी
मालूम किसे कल यूँ ख़ुदा शाद हो न हो

दिल दर्द से आबाद है कह लूँ ग़ज़ल अभी
इस दिल का क्या पता कि फिर आबाद हो न हो

इज़हार मुहब्बत का किया सोच कर यही
कल किसको ख़बर फिर से यूँ इरशाद हो न हो

उल्फ़त के मेरी आज तो चर्चे हैं हर तरफ़
कल वक़्त के होंठों पे ये रूदाद हो न हो

© Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य