चुप्पियाँ तोड़ना ज़रुरी है
लब पे कोई सदा ज़रुरी है
आइना हमसे आज कहने लगा
ख़ुद से भी राब्ता ज़रुरी है
हमसे कोई ख़फ़ा-सा लगता है
कुछ न कुछ तो हुआ ज़रुरी है
ज़िंदगी ही हसीन हो जाए
इक तुम्हारी रज़ा ज़रुरी है
अब दवा का असर नहीं होगा
अब किसी की दुआ ज़रुरी है
© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी