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फिर बसंत आना है

तूफ़ानी लहरें हों
अम्बर के पहरे हों
पुरवा के दामन पर दाग़ बहुत गहरे हों
सागर के माँझी मत मन को तू हारना
जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है
पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है

राजवंश रूठे तो
राजमुकुट टूटे तो
सीतापति-राघव से राजमहल छूटे तो
आशा मत हार, पार सागर के एक बार
पत्थर में प्राण फूँक, सेतु फिर बनाना है
पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है

घर भर चाहे छोड़े
सूरज भी मुँह मोड़े
विदुर रहे मौन, छिने राज्य, स्वर्णरथ, घोड़े
माँ का बस प्यार, सार गीता का साथ रहे
पंचतत्व सौ पर है भारी, बतलाना है
जीवन का राजसूय यज्ञ फिर कराना है
पतझर का मतलब है, फिर बसंत आना है

© Kumar Vishwas : कुमार विश्वास

 

बढ़ो जवानो

बढ़ो जवानो ! और आगे !
आगे, आगे, और आगे !

ताकत दी है राम ने,
रावण भी है सामने;
मेहनत के संग हुई सगाई,
छुट्टी ली आराम ने;

विजय-पताका की गाथाएँ,
गढ़ो जवानो ! और आगे !

ऊँची खड़ी पहाड़ियाँ,
जंगल-जंगल झाड़ियाँ;
नाचा करती मौत रात-दिन,
बदल-बदल की साड़ियाँ;

दुश्मन के दल की छाती पर,
चढ़ो जवानो ! और आगे !

रण-चण्डी हुंकारती
“चलो, उतारें आरती;
जय हर-हर, प्रलयंकर शंकर,
जय-जय भारत-भारती;

बलिदानों से लिखी इबारत
पढ़ो जवानो ! और आगे !

© Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’

 

और बात है

पूरी धरा भी साथ दे तो और बात है
पर तू ज़रा भी साथ दे तो और बात है
चलने को एक पाँव से भी चल रहे हैं लोग
पर दूसरा भी साथ दे तो और बात है

© Kunwar Bechain : कुँवर बेचैन

 

Anju Jain : अंजू जैन


नाम : अंजू जैन
जन्म : 30 अक्टूबर 1968
शिक्षा : पीएच.डी.

निवास : ग़ज़ियाबाद

गीत की संवेदना को सकारात्मकता की ऊर्जा से संवारकर कलमबद्ध करने में डॉ अंजू जैन का कोई सानी नहीं है. शिष्टता और शालीनता की देहरी का सम्मान करती अंजू जी की लेखनी न केवल ऊर्जा देती है बल्कि थके हारे जीवन को नवल संचरण भी उपलब्ध कराती है. अंजू जी की कविता कभी गोपाल सिंह नेपाली की तरह जीवन की संजीवनी बन जाती है तो कभी सुभद्राकुमारी चौहान की तरह शौर्य का प्रतिबिम्ब उकेर देती है.