फ़क़त बादल की तरह से बिखरना चाहता था बस
मुक़द्दर ही तेरे हाथों सँवरना चाहता था बस
मेरे होठों पे दुनिया ने बहुत ख़ामोशियाँ रख दीं
घड़ी भर ही मैं तुझसे बात करना चाहता था बस
© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी
फ़क़त बादल की तरह से बिखरना चाहता था बस
मुक़द्दर ही तेरे हाथों सँवरना चाहता था बस
मेरे होठों पे दुनिया ने बहुत ख़ामोशियाँ रख दीं
घड़ी भर ही मैं तुझसे बात करना चाहता था बस
© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी
तेरी महफ़िल में चले आए हैं लाशों की तरह
और आए हैं तो जी कर ही उठेंगे साक़ी
तूने बरसों जिसे आँखों में छिपाए रखा
आज उस जाम को पी कर ही उठेंगे साक़ी
© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी
काँपती लौ, ये स्याही, ये धुआँ, ये काजल
उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब
ज़िन्दगी गीत थी पर जिल्द बंधाने में कटी
© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’
ख़्वाब नाज़ुक़ थे छू लेने से बिखर जाते थे
इसलिए हम उन्हें बिन छेड़े गुज़र जाते थे
उम्र भर पर्दा हटाया न गया रुख़ से कभी
पहली क़ोशिश में ही वो शर्म से मर जाते थे
© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी
ज़िंदगी का सफ़र यूँ बिताते रहे
आंधियों में दिये हम जलाते रहे
आँसुओं के नगर में कटी ज़िंदगी
हर घड़ी फिर भी हँसते-हँसाते रहे
© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल
अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई
आप मत पूछिए क्या हम पे सफ़र में गुज़री
था लुटेरों का जहाँ गाँव, वहीं रात हुई
© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’
हर नए मोड़ पे बस एक नया ग़म चाहा
गहरे ज़ख़्मों के लिए थोड़ा-सा मरहम चाहा
हमने जो चाहा उसे पाया हमेशा लेकिन
एक अफ़सोस यही है कि बहुत कम चाहा
© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी
धड़कनें बेचैन, साँसों में उदासी है बहुत
ऐसा लगता है तुम्हारी रूह प्यासी है बहुत
तुम पियो जमकर कहीं कम पड़ नहीं जाए तुम्हें
क्या हमारी बात हमको तो ज़रा-सी है बहुत
© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी
भरे घर में तेरी आहट कहीं मिलती नहीं अम्मा
तेरे हाथों की नरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा
मैं तन पे लादे फिरता हूँ दुशाले रेशमी फिर भी
तेरी गोदी-सी गरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा
© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी
क़जा आती है पल– पल, ज़िंदगी मुश्क़िल से आती है
अगर हँसना भी चाहें तो, हँसी मुश्क़िल से आती है
उसी का नाम होठों पर उसी को है दुआ दिल से
जिसे शायद हमारी याद भी मुश्क़िल से आती है
© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी