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द्रोण

आचार्य था
मगर ट्यूशनिया
राजकुमारों से आगे न निकल जाए कोई!
उसे तो तुमने नहीं सिखाया
धनुर्विद्या का ‘क’ ‘ख’ भी
मगर वाह रे भील बालक
तुम नहीं थे
तो तुम्हारी मूर्ति को ही पूजता रहा
और तुम्हीं ने
गुरु दक्षिणा का स्वांग रच
कटवा डाला उसका अंगूठा!
इसीलिए ना!
कि कहीं पिछड़ न जाए तुम्हारा टॉपर

और जब पाण्डव हो गए खल्लास
तो कौरवों की कमान संभाल ली
वहाँ बेटे अश्वत्थामा को भी
मिल गया काम!
वाह गुरु वाह
मारे भी गए तो
अपने एक चहेते चेले के हाथों
सम्मान पूर्वक!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता