Tag Archives: Poet’s life

स्वयं से संवाद

साथ किसी के रहना लेकिन
खुद को खुद से दूर न रखना।

रेगिस्तानों में उगते हैं
अनबोये काँटों के जंगल,
भीतर एक नदी होगी तो
कलकल कलकल होगी हलचल,

जो प्यासे सदियों से बंधक
अब उनको मजबूर न रखना।

खण्डहरों ने रोज बताया
सारे किले ढहा करते हैं,
कोशिश से सब कुछ संभव है
सच ही लोग कहा करते हैं,

भले दरक जाना बाहर से
मन को चकनाचूर न रखना।

पहले से होता आया है
आगे भी होता जायेगा,
अंगारों के घर से अक्सर
फूलों को न्योता आयेगा,

आग दिखाना नक्कारों को
शोलों पर संतूर न रखना।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल

 

सपने गीत बने

किसे पता है? अक्सर मेरे सपने गीत बने।

कुछ सपने मेलोँ जैसे हैँ कोई है सूने का सपना।
कभी कभी क्षमता से ऊँचा इन्द्रधनुष छूने का सपना।
जैसे हारी हुयी थकन का सपना जीत बने।

कमरे की खिड़की का परदा मैँने अरसे बाद हटाया,
खिड़की से चिपका बैठा था कब से पागल चाँद लजाया।
मै भी चाहूँ मेरा भी कुछ सुखद अतीत बने।

अगर गीत बनवाना हो तो तुम भी अपने सपने देना,
मुझे रात दिन हँसने रोने लिखने और तड़पने देना।
बस सपने ही दिये सभी ने जो भी मीत बने।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल

 

मैं शायद अब नहीं मिलूँगा

मेरे गीत मिलेंगे तुमको, मैं शायद अब नहीं मिलूँगा I

रंग बिरंगे फूल मिलेंगे, फूलों पर तितलियां मिलेंगी,
तितली के पंखों को छूना,छूकर अपने हाथ देखना,
हाथों पर कुछ रंग दिखेंगे,शायद उन्हें सहेज सको तुम
उन रंगों में तुम्हे मिलूंगा जी भर अपने हाथ देखना,
कई अतीत मिलेंगे तुमको मैं शायद अब नहीं मिलूँगा।

मेरे जाते ही कुछ तारे , बस अंगारे बन जायेंगे
तुम्हें लगेगा आसमान में ,कुछ हलचल है बारिश होगी
चांद कई टुकड़ों में होगा, तुम्हे लगेगा कुछ साजिश है
आंख तुम्हारी गीली होगी और न कोई साजिश होगी
सब विपरीत मिलेंगे तुमको मैं शायद अब नहीं मिलूँगा।

साथ तुम्हारे यादें होंगी, पल पल साथ निभाने वाली
दिन का सफर साथ करने को सूरज भी तैयार मिलेगा
जिस दिन मुझे भूल जाओगे तुम दुनिया को प्यार करोगे
तब ही तुम को दुनियाभर से दुनियाभर का प्यार मिलेगा,
सारे मीत मिलेंगे तुमको मैं शायद अब नहीं मिलूँगा।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल

 

गीतकार मन

दुनिया भर के आंसू लेकर आखिर कहां कहां भटकोगे,
गीतकार मन, कहीं बैठकर गीत तुम्हें गाना ही होगा।

ज्ञात मुझे तुम चंदनवन से नागदंश लेकर लौटे हो
ज्ञात मुझे यह सागरतट से तुम प्यासे वापस आये,
कितने ही अपराह्न तुम्हारे ढलते रहे प्रतीक्षा में
कितने पुष्पमाल स्वागत के यूँ ही गुंधकर कुम्हलाए,
लेकिन तुमने हार नहीं मानी, कांटों में मुसकाये तुम
वह सारी अनुभूति भुलाकर मीत तुम्हें गाना ही होगा।

करती हैं व्यापार अमृत का गली गली में विष कन्यायें
भौंरे बैठे हैं फूलों पर गंधों के विक्रेता बनकर,
दूर दूर तक दृष्टि घुमाकर देखो एक बार तो देखो
मुकुट पहन कर बैठे सारे हारे हुये विजेता बनकर
घोर विसंगतियों के युग में तुम यों मौन नहीं रह सकते
रूठे युग फिर भी युग के विपरीत तुम्हें गाना ही होगा।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल

 

ये चार काग़ज़, ये लफ्ज़ ढाई

ये चार काग़ज़, ये लफ्ज़ ढाई
है उम्र भर की यही कमाई

किसी ने हम पर जिगर उलीचा
किसी ने हमसे नज़र चुराई

दिया ख़ुदा ने भी ख़ूब हमको
लुटाई हमने भी पाई-पाई

न जीत पाए, न हार मानी
यही कहानी, ग़ज़ल, रुबाई

न पूछ कैसे कटे हैं ये दिन
न माँग रातों की यूँ सफाई

© Naresh Shandilya : नरेश शांडिल्य