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इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं

इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूँ गधे ही गधे हैं

गधे हँस रहे आदमी रो रहा है
हिन्दोस्ताँ में ये क्या हो रहा है

जवानी का आलम गधों के लिए है
ये रसिया, ये बालम गधों के लिए है

ये दमदम ये पालम गधों के लिए है
ये संसार सालम गधों के लिए है

ज़माने को उनसे हुआ प्यार देखो
गधों के गले में पड़े हार देखो

ये सर उनके क़दमों पे क़ुरबान कर दो
हमारी तरफ़ से ये ऐलान कर दो

कि अहसान हम पे है भारी गधों के
हुए आज से हम पुजारी गधों के

पिलाए जा साक़ी पिलाए जा डट के
तू विस्की के मटके पे मटके पे मटके

मैं दुनिया को अब भूलना चाहता हूँ
गधों की तरह फूलना चाहता हूँ

घोडों को मिलती नहीं घास देखो
गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो

यहाँ आदमी की कहाँ कब बनी है
ये दुनिया गधों के लिए ही बनी है

जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है

जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है

मैं क्या बक रहा हूँ, ये क्या कह गया हूँ
नशे की पिनक में कहाँ बह गया हूँ

मुझे माफ़ करना मैं भटका हुआ था
ये ठर्रा था भीतर जो अटका हुआ था!

© Omprakash Aditya : ओमप्रकाश ‘आदित्य