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तुम निरखो

तुम निरखो, हम नाट्य करें!
राम, तुम्हारी रंगभूमि में कहो, कौन-सा रूप धरें?
हाव-भाव तो आगे आवें
भावें अथवा तुम्हें न भावें
वे न हमारे समझे जावें
हम कोई भी स्वांग भरें
तुम देखो हम नाट्य करें!

खेलें, डोलें, हँस लें, बोलें,
अनायास कुछ के कुछ हो लें
तनिक इसी मिष गा लें, रो लें
हम अलिप्त, किस हेतु डरें
तुम देखो, हम नाट्य करें!

किन्तु धारणा तुच्छ हमारी
पावें हम सब बारी-बारी
अलख सुचना सदा तुम्हारी
तारो तो हम क्यूँ न तारें
तुम देखो, हम नाट्य करें!

© Maithili Sharan Gupt : मैथिलीशरण गुप्त