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वर्तमान उज्ज्वल करना है

विस्मृत कर दो कुछ अतीत को, दूर कल्पना को भी छोड़ो
सोचो दो क्षण गहराई से, आज हमें अब क्या करना है

वर्तमान की उज्ज्वलता से भूत चमकता भावी बनता
इसीलिए सह-घोष यही हो, ‘वर्तमान उज्ज्वल करना है’

हमने जो गौरव पाया वह अनुशासन से ही पाया है
जीवन को अनुशासित रखकर, वर्तमान उज्ज्वल करना है

अनुशासन का संजीवन यह, दृढ़-संचित विश्वास रहा है
आज आपसी विश्वासों से, वर्तमान उज्ज्वल करना है

क्षेत्र-काल को द्रव्य भाव को समझ चले वह चल सकता है
सिर्फ बदल परिवर्तनीय को, वर्तमान उज्ज्वल करना है

अपनी भूलों के दर्शन स्वीकृति परिमार्जन में जो क्षम है
वह जीवित, जीवित रह कर ही, वर्तमान उज्ज्वल करना है

औरों के गुण-दर्शन स्वीकृति अपनाने में जो तत्पर है
वह जीवित, जीवित रह कर ही, वर्तमान उज्ज्वल करना है

दर्शक दर्शक ही रह जाते, हम उत्सव का स्पर्श करेंगे
परम साध्य की परम सिध्दि यह, वर्तमान उज्ज्वल करना है

© Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ

 

न महलों की बुलंदी से

न महलों की बुलंदी से, न लफ़्ज़ों के नगीने से
तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से

कि अब मर्क़ज़ में रोटी है, मुहब्बत हाशिए पर है
उतर आई ग़ज़ल इस दौर में कोठी के ज़ीने से

अदब का आइना उन तंग गलियों से गुज़रता है
जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर माँ के सीने से

बहारे-बेकिरां में ताक़यामत का सफ़र ठहरा
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से

अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है
संजो कर रक्खें ‘धूमिल’ की विरासत को करीने से

© Adam Gaundavi : अदम गौंडवी

 

भविष्य

भविष्य!
वर्तमान से निर्मित होता है
वर्तमान!
भविष्य में प्रतिबिंबित होता है
जो वर्तमान में जीता है
भविष्य उसी का होता है

© Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ

 

भूख के अहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो

भूख के अहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक़ के जल्वों से वाक़िफ़ हो गई
उसको अब बेवा के माथे की शिक़न तक ले चलो

मुझको नज़्मो-ज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

गंगाजल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिश्नगी को वोदका के आचमन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो

Adam Gaundavi : अदम गौंडवी