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प्रेम

प्रेम की राह में पीर के गाँव हैं
प्रेम ही जग में सबसे लुभावन हुआ
प्रेम खोया तो सावन भी पतझर बना
प्रेम पाया तो पतझर भी सावन हुआ

जब नदी कोई सागर को अर्पित हुई
हाय! अमरित-सा जल उसका खारा हुआ
सूर्य ने छल से उसका किया अपहरण
कोई बादल उसे पा आवारा हुआ
हिमशिखर में ढली, ऑंसुओं सी गली
और गंगा का जल फिर से पावन हुआ

एक अनमोल पल की पिपासा लिए
कोई साधक जगत् में विचरता रहा
घोर तप में तपी देह जर्जर हुई
मन में आशाओं का स्रोत झरता रहा
पाने वाले ने आनंद-पथ पा लिया
जग कहे- ‘साधना का समापन हुआ’

एक राधा कथा से नदारद हुई
एक मीरा अचानक हवा हो गई
सिसकियाँ उर्मिला की घुटीं मन ही मन
मंथरा जीते जी बद्दुआ हो गई
बस कथानक ने सबको अमर कर दिया
फिर न राघव हुए ना दशानन हुआ

© Chirag Jain : चिराग़ जैन

 

राधा सौंदर्य

करि की चुराई चाल सिंह को चुरायो लंक
दूध को चुरायो रंग, नासा चोरी कीर की
पिक को चुरायो बैन, मृग को चुरायो नैन
दसन अनार, हाँसी बीजुरी गँभीर की
कहे कवे ‘बेनी’ बेनी व्याल की चुराय लीनी
रति रति सोभा सब रति के सरीर की
अब तो कन्हैया जी को चित हू चुराय लीनो
चोरटी है गोरटी या छोरटी अहीर की

© Beni Prasad Beni : बेनी प्रसाद बेनी