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किसी से बात कोई आजकल नहीं होती

किसी से बात कोई आजकल नहीं होती
इसीलिए तो मुक़म्म्ल ग़ज़ल नहीं होती

ग़ज़ल-सी लगती है लेकिन ग़ज़ल नहीं होती
सभी की ज़िंदगी खिलता कँवल नहीं होती

तमाम उम्र तज़ुर्बात ये सिखाते हैं
कोई भी राह शुरु में सहल नहीं होती

मुझे भी उससे कोई बात अब नहीं करनी
अब उसकी ओर से जब तक पहल नहीं होती

वो जब भी हँसती है कितनी उदास लगती है
वो इक पहेली है जो मुझसे हल नहीं होती

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

चुप्पियाँ बोलीं

चुप्पियाँ बोलीं
मछलियाँ बोलीं-
हमारे भाग्य में
ढ़ेर-सा है जल, तो तड़पन भी बहुत है

शाप है या कोई वरदान है
यह समझ पाना कहाँ आसान है
एक पल ढेरों ख़ुशी ले आएगा
एक पल में ज़िन्दगी वीरान है
लड़कियाँ बोलीं-
हमारे भाग्य में
पर हैं उड़ने को, तो बंधन भी बहुत हैं…

भोली-भाली मुस्कुराहट अब कहाँ
वे रुपहली-सी सजावट अब कहाँ
साँकलें दरवाज़ों से कहने लगीं
जानी-पहचानी वो आहट अब कहाँ
चूड़ियाँ बोलीं-
हमारे भाग्य में
हैं ख़नकते सुख, तो टूटन भी बहुत हैं…

दिन तो पहले भी थे कुछ प्रतिकूल से
शूल पहले भी थे लिपटे फूल से
किसलिये फिर दूरियाँ बढ़ने लगीं
क्यूँ नहीं आतीं इधर अब भूल से
तितलियाँ बोलीं-
हमारे भाग्य में
हैं महकते पल, तो अड़चन भी बहुत हैं…

रास्ता रोका घने विश्वास ने
अपनेपन की चाह ने, अहसास ने
किसलिये फिर बरसे बिन जाने लगी
बदलियों से जब ये पूछा प्यास ने
बदलियाँ बोलीं-
हमारे भाग्य में
हैं अगर सावन तो भटकन भी बहुत हैं…

भावना के अर्थ तक बदले गए
वेदना के अर्थ तक बदले गए
कितना कुछ बदला गया इस शोर में
प्रार्थना के अर्थ तक बदले गए
चुप्पियाँ बोलीं-
हमारे भाग्य में
कहने का है मन, तो उलझन भी बहुत हैं…

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

तुमसे मिलकर

तुमसे मिलकर जीने की चाहत जागी
प्यार तुम्हारा पाकर ख़ुद से प्यार हुआ

तुम औरों से कब हो, तुमने पल भर में
मन के सन्नाटों का मतलब जान लिया
जितना मैं अब तक ख़ुद से अनजान रहा
तुमने वो सब पल भर में पहचान लिया
मुझ पर भी कोई अपना हक़ रखता है
यह अहसास मुझे भी पहली बार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़ुद से प्यार हुआ

ऐसा नहीं कि सपन नहीं थे आँखों में
लेकिन वो जगने से पहले मुरझाए
अब तक कितने ही सम्बन्ध जिए मैंने
लेकिन वो सब मन को सींच नहीं पाये
भाग्य जगा है मेरी हर प्यास क
तृप्ति के हाथों ही ख़ुद सत्कार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़ुद से प्यार हुआ

दिल कहता है तुम पर आकर ठहर गई
मेरी हर मजबूरी, मेरी हर भटकन
दिल के तारों को झंकार मिली तुमसे
गीत तुम्हारे गाती है दिल की धड़कन
जिस दिल पर अधिकार कभी मैं रखता था
उस दिल के हाथों ही अब लाचार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़ुद से प्यार हुआ

बहकी हुई हवाओं ने मेरे पथ पर
दूर-दूर तक चंदन-गंध बिखेरी है
भाग्य देव ने स्वयं उतरकर धरती पर
मेरे हाथ में रेखा नई उकेरी है
मेरी हर इक रात महकती है अब तो
मेरा हर दिन जैसे इक त्यौहार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़ुद से प्यार हुआ

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

तेरी गोदी-सी गरमाहट

भरे घर में तेरी आहट कहीं मिलती नहीं अम्मा
तेरे हाथों की नरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा
मैं तन पे लादे फिरता हूँ दुशाले रेशमी फिर भी
तेरी गोदी-सी गरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

सिर्फ़ अकेले चलने का मन है

रिश्ते कई बार बेड़ी बन जाते हैं
प्रश्नचिह्न बन राहों में तन जाते हैं
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ अकेले चलने का मन है

तनहा चलना रास नहीं आता लेकिन
कभी-कभी तनहा भी चलना अच्छा है
जिसको शीतल छाँव जलाती हो पल-पल
कड़ी धूप में उसका जलना अच्छा है
अपना बनकर जब उजियारे छ्लते हों
अंधियारों का हाथ थामना अच्छा है
रोज़-रोज़ शबनम भी अगर दग़ा दे तो
अंगारों का हाथ थामना अच्छा है
क़दम-क़दम पर शर्त लगे जिस रिश्ते में
तो वह रिश्ता भी केवल इक बन्धन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ अकेले चलने का मन है

दुनिया में जिसने भी आँखें खोली हैं
साथ जन्म के उसकी एक कहानी है
उसकी आँखों में जीवन के सपने हैं
आँसू हैं, आँसू के साथ रवानी है
अब ये उसकी क़िस्मत कितने आँसू हैं
और उसकी आँखों में कितने सपने हैं
बेगाने तो आख़िर बेगाने ठहरे
उसके अपनों मे भी कितने अपने हैं
अपनों और बेगानों से भी तो हटकर
जीकर देखा जाए कि कैसा जीवन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ अकेले चलने का मन है

अपना बोझा खुद ही ढोना पड़ता है
सच है रिश्ते अक़्सर साथ नहीं देते
पाँवों को छाले तो हँसकर देते है
पर हँसती-गाती सौग़ात नहीं देते
जिसने भी सुलझाना चाहा रिश्तों को
रिश्ते उससे उतना रोज़ उलझते हैं
जिसने भी परवाह नहीं की रिश्तों की
रिश्ते उससे अपने आप सुलझते हैं
कभी ज़िन्दगी अगर मिली तो कह देंगे
तुझको सुलझाना भी कितनी उलझन है
ऐसा नहीं किसी से कोई अनबन है
कुछ दिन सिर्फ़ अकेले चलने का मन है

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

ओस की बूँदें पड़ीं तो

ओस की बूँदें पड़ीं तो पत्तियाँ ख़ुश हो गईं
फूल कुछ ऐसे खिले कि टहनियाँ ख़ुश हो गईं

बेख़ुदी में दिन तेरे आने के यूँ ही गिन लिये
एक पल को यूँ लगा कि उंगलियाँ ख़ुश हो गईं

देखकर उसकी उदासी, अनमनी थीं वादियाँ
खिलखिलाकर वो हँसा तो वादियाँ ख़ुश हो गईं

आँसुओं में भीगे मेरे शब्द जैसे हँस पड़े
तुमने होठों से छुआ तो चिट्ठियाँ ख़ुश हो गईं

साहिलों पर दूर तक चुपचाप बिखरी थीं जहाँ
छोटे बच्चों ने चुनी तो सीपीयाँ ख़ुश हो गईं

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

साथ सब ना चल सकेंगे

साथ सब ना चल सकेंगे, ये तो हम भी जानते हैं
लोग रस्ते में रुकेंगे, ये तो हम भी जानते हैं
दूसरों के आँसू अपनी, आँख से जो भी बहाए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

दूसरों को जानते हैं, ख़ुद को पहचाना नहीं है
बात है छोटी मगर, सबने इसे माना नहीं है
बौने क़िरदारों को अक़्सर होता है क़द का गुमां
क़द किसी का नापने का भीड़ पैमाना नहीं है
हम तो बस उस आदमी के साथ चलना चाहते हैं
जो अकेले में कभी ना, आइने से मुँह चुराए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

आवरण भाने लगे तो सादगी का अर्थ भूले
अर्थ की चाहत में पल-पल ज़िन्दगी का अर्थ भूले
छोटी ख़ुशियाँ द्वार पर दस्तकें तो लाईं लेकिन
हम बड़ी ख़ुशियों में छोटी हर ख़ुशी का अर्थ भूले
दूसरों की ख़ुशियों में जो ढूंढकर अपनी ख़ुशी को
भोली-सी मुस्कान हर दम अपने होठों पर सजाए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

हर किसी को ये भरम है, साथ है दुनिया का मेला
पर हक़ीक़त में सभी को होना है इक दिन अकेला
ज़िन्दगी ने मुस्कुरा कर बस गले उसको लगाया
जिसने भी ज़िदादिली से ज़िंदगी का खेल खेला
दुनिया में उसको सभी मौसम सुहाने लगते हैं
मौत की खिलती कली पर, भँवरा बन जो गुनगुनाए
वो हमारे साथ आए, भीड़ चाहे लौट जाए

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी