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कल्पना

कल्पना का एक किनारा
तुम्हारे हाथ में है
और दूसरा मेरे हाथ में
ये सिमट भी सकते हैं
और बढ़ भी सकते हैं

© Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ

 

भाषा

तुमने कहा था-
”ख़त्म हो चुकी है अब
संवाद की स्थिति
और नहीं हो सकती
कोई बात!”

कारण पूछने पर
कुछ सोच कर
आरोप लगाया था तुमने
मुझ पर ही!

और मैंने भी सोचा था
कि हो भी कैसे सकती है बात
दो भिन्न भाषा-भाषियों में

हाँ!
…तुम्हारी भाषा
देह की थी
और मेरी
मन की!

© Sandhya Garg : संध्या गर्ग