Tag Archives: Romance

तुम्हारी याद आती है

अभी झंकार उस पल की ह्रदय में गुनगुनाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

नहाई हैं मधुर-सी गंध के झरने में वो बातें
तुम्हारे प्यार के दो बोल वो मेरी हैं सोगातें
अभी कोयल सुहानी शाम में वो गीत गाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

हवाओं से रहा सुनता हूँ मन का साज अब तक भी
फिज़ाओं में घुली है वो मधुर आवाज अब तक भी
वो मुझको पास अपने खींचकर हरदम बुलाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

तुम्हें ही सोचता रहता हूँ ये साँसें हैं तुमसे ही
अचानक चुभने लगती है मुझे मौसम की खामोशी
ओ’ बरबस आँसुओं से मुस्कराहट भीग जाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

तुम्हें गर भूलना चाहूँ तो ख़ुद को भूलना होगा
मगर जीना है तो कुछ इस तरह भी सोचना होगा
कठिन ये ज़िन्दगी आसान लम्हे भी तो लाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

तुम तक नींद न आई होगी

तुम तक नींद न आई होगी
मेरी आँखों से
मेरी आँखों से ओझल हो, तुम तक नींद न आई होगी !

नींद स्वयं ही चुरा ले गई,
मेरे मन के स्वप्न ही सुहाने;
अँधियारी-रजनी के धोखे,
भूल हो गई यह अनजाने;

जितनी निकट नींद के उतनी, और कहाँ निठुराई होगी ?
मेरी आँखे से ओझल हो, तुम तक नींद न आई होगी ?

मिलन-विरह के कोलाहल में,
तुम अब तक एकाकी कैसे ?
परिवर्तन-शीला संसृति में,
तुम सचमुच जैसे-के-तैसे;

ऐसी आराधना, धरा पर, कब किसने अपनाई होगी,
मेरी आँखों से ओझल हो, तुम तक नींद न आई होगी ।

यौवन की कलुषित-कारा में
तुम पावन से भी अति पावन,
पापी-दुनिया बहुत बुरी है,
ओ, मेरे भाले मनभावन !

देख तुम्हारी निर्मलता को, शबनम भी शरमाई होगी !
मेरी आँखों से ओझल हो, तुम तक नींद न आई होगी !

© Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’

 

रूठकर आए तुम

रूठकर आए तुम
“शहर से कोई आता नहीं लौटकर”
ऐसी हर बात को झूठ कर आए तुम
प्रीत पर पीर की जब परत जम गई
तब किसी बीज-से फूटकर आए तुम

भोर आई नयन में निशा आँजकर
धूप बैठी थी मल देह नवनीतता
आस और त्रास में झूलता था हृदय
पल में युग रीतते, पल नहीं बीतता
तोड़कर चल पड़े स्वप्न जिस नैन के
अब उसी नैन में टूटकर आए तुम

इक छवि शेष तो थी हृदय में कहीं
व्यस्तताओं ने तुमको दिया था भुला
हँस पड़ी रोते-रोते प्रतीक्षाएँ सब
कह रहा है समय क्या कोई चुटकुला
थक गईं सारी अनुनय-विनय उस जगह
आए भी तो प्रिये रूठकर आए तुम

© Manisha Shukla : मनीषा शुक्ला

 

नींदें कहाँ से आएँ

अब भी हसीन सपने आँखों में पल रहे हैं
पलकें हैं बंद फिर भी आँसू निकल रहे हैं
नींदें कहाँ से आएँ बिस्तर पे करवटें ही
वहाँ तुम बदल रहे हो यहाँ हम बदल रहे हैं

© Vishnu Saxena : विष्णु सक्सेना

 

अँखियाँ मधुमास लिए उर में

अँखियाँ मधुमास लिए उर में, अलकों में भरी बरखा कह दूँ
छवि है जिसपे रति मुग्ध हुई, गति है कि कोई नदिया कह दूँ
उपमाएँ सभी पर तुच्छ लगें, इस अद्भुत रूप को क्या कह दूँ
बल खाती हुई उतरी मन में, बस प्रेम-पगी कविता कह दूँ

© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी

 

कहीं जिंदगी में हम-तुम

कहीं जिंदगी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी गीत तुम सुनाओ, कभी गीत हम सुनाएँ !

आकाश गुनगुनाए, धरती न बोल पाए;
जो भी हो जिसको कहना, कभी सामने तो आए;

कहीं यामिनी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी दीप तुम जलाओ, कभी दीप हम जलाएँ !

नहीं चाहते सितारे, कभी चाँदनी पधारे;
रहे मेघ सिर पटकते, सौदामिनी के द्वारे;

कहीं चाँदनी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी तुम हमें मनाओ, कभी हम तुम्हें मनाएँ !

कह तक न पाऊँ ऐसा उन्माद भी नहीं है;
कुछ कहते डर रहे हैं कुछ याद भी नहीं है;

कहीं बेबसी में हम-तुम संयोग ऐसा पाएँ-
कभी याद तुम न आओ, कभी याद हम न आएँ !

© Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’

 

कई सवाल ओढ़कर बैठे हैं

कब से कई सवाल ओढ़कर बैठे हैं।

कोई नहीं मिला मुझको यूँ जब तक भटके मारे-मारे
मोती लगे छूटने जब से इस जीवन की झील किनारे
बदल गये हैं दृश्य अचानक बदल गया है हाल…
काग हंस की खाल ओढ़कर बैठे हैं।

गाता फिरता गली-गली मैं टूटन-उलझन-पीर तुम्हारी
सम्मोहन के आगे झुकते भवन, कँगूरे, महल, अटारी
दुनिया ने जो किये समर्पित सम्मानों के शाल…
सपनों के कंकाल ओढ़कर बैठे हैं।

आगे-पीछे नाच रही है बनकर हर उपलब्धि उजाला
जाने कितने भ्रम पाले है मेरा एक चाहने वाला
मैंने उसे बहुत समझाया, कहा कि भ्रम मत पाल…
फँसे नहीं हैं जाल ओढ़कर बैठे हैं।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल

 

चुम्बन

लहर रही शशि-किरण चूम निर्मल यमुनाजल
चूम सरित की सलिल राशि खिल रहे कुमुद दल
कुमुदों के स्मिति-मन्द खुले वे अधर चूम कर
बही वायु स्वच्छन्द, सकल पथ घूम-घूम कर
है चूम रही इस रात को वही तुम्हारे मधु-अधर
जिनमें हैं भाव भरे हु‌ए सकल-शोक-सन्तापहर!

© Suryekant Tripathi ‘Nirala’ : सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

 

हरियाली फूटी

पल्लव – पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,
बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई।
झोंके पुरवाई के लगते, बादल के दल नभ पर भगते,
कितने मन सो-सोकर जगते, नयनों में भावुकता छाई।
लहरें सरसी पर उठ-उठकर गिरती हैं सुन्दर से सुन्दर,
हिलते हैं सुख से इन्दीवर, घाटों पर बढ आई काई।
घर के जन हुये प्रसन्न-वदन, अतिशय सुख से छलके लोचन,
प्रिय की वाणी का अमन्त्रण लेकर जैसे ध्वनि सरसाई।

© Suryekant Tripathi ‘Nirala’ : सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

 

चुप्पियाँ तोड़ना जरुरी है

चुप्पियाँ तोड़ना ज़रुरी है
लब पे कोई सदा ज़रुरी है

आइना हमसे आज कहने लगा
ख़ुद से भी राब्ता ज़रुरी है

हमसे कोई ख़फ़ा-सा लगता है
कुछ न कुछ तो हुआ ज़रुरी है

ज़िंदगी ही हसीन हो जाए
इक तुम्हारी रज़ा ज़रुरी है

अब दवा का असर नहीं होगा
अब किसी की दुआ ज़रुरी है

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी