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यथोचित

पुराने वस्त्र को
सम्मान दिया जा सकता है
पर ओढ़ा नहीं जा सकता
ओढ़ा वही जाएगा
जो बचा सकता है
सर्दी से
धूप से
वर्षा से
आंधी से

फूल को चाहिए कि
वह कली को स्थान दे
कली को चाहिए कि
वह फूल को सम्मान दे
पतझड़ को रोका नहीं जा सकता
कोंपल को टोका नहीं जा सकता

© Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ

 

वर्तमान उज्ज्वल करना है

विस्मृत कर दो कुछ अतीत को, दूर कल्पना को भी छोड़ो
सोचो दो क्षण गहराई से, आज हमें अब क्या करना है

वर्तमान की उज्ज्वलता से भूत चमकता भावी बनता
इसीलिए सह-घोष यही हो, ‘वर्तमान उज्ज्वल करना है’

हमने जो गौरव पाया वह अनुशासन से ही पाया है
जीवन को अनुशासित रखकर, वर्तमान उज्ज्वल करना है

अनुशासन का संजीवन यह, दृढ़-संचित विश्वास रहा है
आज आपसी विश्वासों से, वर्तमान उज्ज्वल करना है

क्षेत्र-काल को द्रव्य भाव को समझ चले वह चल सकता है
सिर्फ बदल परिवर्तनीय को, वर्तमान उज्ज्वल करना है

अपनी भूलों के दर्शन स्वीकृति परिमार्जन में जो क्षम है
वह जीवित, जीवित रह कर ही, वर्तमान उज्ज्वल करना है

औरों के गुण-दर्शन स्वीकृति अपनाने में जो तत्पर है
वह जीवित, जीवित रह कर ही, वर्तमान उज्ज्वल करना है

दर्शक दर्शक ही रह जाते, हम उत्सव का स्पर्श करेंगे
परम साध्य की परम सिध्दि यह, वर्तमान उज्ज्वल करना है

© Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ

 

कल्पना

कल्पना का एक किनारा
तुम्हारे हाथ में है
और दूसरा मेरे हाथ में
ये सिमट भी सकते हैं
और बढ़ भी सकते हैं

© Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ

 

भविष्य

भविष्य!
वर्तमान से निर्मित होता है
वर्तमान!
भविष्य में प्रतिबिंबित होता है
जो वर्तमान में जीता है
भविष्य उसी का होता है

© Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ

 

स्मृतियाँ

अधखुली ऑंखों में
थिरकती नन्हीं पुतलियाँ
प्रतिबिम्बों का भार ढो रही हैं
पश्चिम के दरवाज़े पर
प्रतीक्षा से ऊबी
स्मृतियाँ
सिसक-सिकक
रो रही हैं।

– आचार्य महाप्रज्ञ

 

Acharya Mahapragya : आचार्य महाप्रज्ञ

 


नाम : आचार्य महाप्रज्ञ
जन्म : 14 जून 1920; झुंझुनू (राजस्थान)
निधन : 9 मई 2010 (सरदारशहर)

14 जून सन् 1920 को झुंझुनू (राजस्थान) के छोटे से गाँव टमकोर में श्रीमान् तोलाराम जी की धर्मपत्नी श्रीमती बालूजी ने एक पुत्र को जन्म दिया। नथमल नाम का यह बालक अभी ढाई मास का ही था कि पिता का स्वर्गवास हो गया। दस वर्ष की छोटी सी आयु में इस बालक ने अपनी माता के साथ आचार्य कालूगणी जी से 29 जनवरी 1931 को सरदारशहर में दीक्षा ले ली और बालक नथमल ‘मुनि नथमल’ हो गया। यह पल उस विराट यात्रा का आदि था जो नियति ने एक महापुरुष के लिए निर्धारित की थी। आचार्य कालूगणी ने मुनि तुलसी को आपकी शिक्षा का उत्तरदायित्व सौंपा। महान गुरु के अध्यापन और आपके मेधावी अध्ययन ने शीघ्र ही आपको प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी तथा मारवाड़ी भाषाओं में दक्ष कर दिया। जैन आगम का आपने गहन अध्ययन किया तथा भारतीय एवं पश्चिमी दर्शन के भी आप समीक्षक बन गए। ज्ञान की पिपासा ने आपको भौतिकी, जैव-विज्ञान, आयुर्वेद, राजनीति, अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र में भी पारंगत कर दिया। काव्य आपके नैसर्गिक गुणों में समाहित था।
2 मार्च सन् 1949 को आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन शुरू किया, जिसमें आपने महती भूमिका अदा की। जीवन के तीसरे दशक के अंतिम वर्षों में आपने ध्यान की महत्ता को समझते हुए ध्यान की कुछ नई तकनीकें खोजनी शुरू कीं। बीस वर्ष की सतत् साधना के बाद आपने प्रेक्षाध्यान जैसी नितांत वैज्ञानिक तकनीक की खोज की। शिक्षा के क्षेत्र में ‘जीवन विज्ञान’ के नाम से क्रांतिकारी प्रायौगिक अभिक्रम भी आपने प्रस्तुत किया।
12 नवम्बर सन् 1978 को आचार्य तुलसी ने आपको महाप्रज्ञ के नाम से संबोधित किया। 4 फरवरी 1979 को आचार्य तुलसी ने अपने इस अद्वितीय शिष्य को युवाचार्य घोषित किया। 18 फरवरी सन् 1994 को आचार्य तुलसी ने अपना आचार्य पद त्याग दिया और युवाचार्य महाप्रज्ञ को दशम् आचार्य के रूप में प्रतिष्ठापित किया। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान तथा जीवन-विज्ञान अब तक आपकी प्राथमिकता बन चुकी थी।
सन् 1991 में आचार्य तुलसी के सान्निध्य में स्थापित ‘जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय’ ने आपके आध्यात्मिक दर्शन के विकास के नए-नए आयाम स्थापित किए। 5 दिसम्बर सन् 2001 को आचार्य महाप्रज्ञ ने सुजानगढ़ (राजस्थान) से अहिंसा यात्रा आरंभ की जो 14 दिसम्बर सन् 2008 को सुजानगढ़ में ही सम्पन्न हुई। आपने लगभग एक लाख किलोमीटर पदयात्रा का कीर्तिमान स्थापित किया।
9 मई सन् 2010 को राजस्थान के सरदारशहर नामक स्थान पर आप नश्वर देह त्याग कर युवाचार्य महाश्रमण को धर्मसंघ की बाग़डोर सौंप गए।
आचार्य महाप्रज्ञ ने जैन आगम के सम्पादन जैसा महान कार्य तो किया ही, साथ ही साथ जैन दर्शन के फलक को विस्तार देते हुए सभी धर्मावलम्बियों के लिए उसकी प्रासंगिकता भी सिद्ध की।
ध्यान, योग, दर्शन, धर्म, संस्कृति, विज्ञान, स्वास्थ्य, जीवनशैली, व्याकरण, शिक्षा, साहित्य, राजनीति, समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र जैसे तमाम विषयों पर कविता, लघुकथा, निबंध, संस्मरण तथा साक्षात्कार जैसी विधाओं में आपने क़लम चलाई है। आपने जैन तीर्थंकर भगवान ॠषभदेव के जीवन पर आधारित ‘ॠषभायण’ महाकाव्य की रचना की, जिसे विद्वत समाज एक महत्त्वपूर्ण कृति के रूप में देख रहा है।
श्रीमद्भागवद्गीता जैसे कालजयी ग्रंथ को आधार बनाकर आपने ‘गीता संदेश और प्रयोग’ जैसी वैज्ञानिक पुस्तक रची। आप द्वारा रचित ‘संबोधि ग्रंथ’ जैन गीता के रूप में मान्य और प्रतिष्ठित हुआ। ‘महावीर का स्वास्थ्य शास्त्र’, ‘मैं हूँ अपने भाग्य का निर्माता’, ‘लोकतंत्र : नया व्यक्ति नया समाज’ तथा ‘नया मानव नया विश्व’ जैसे अनेक ग्रंथ आपके वैज्ञानिक चिंतन के प्रमाण हो। आपकी आत्मकथा ‘यात्रा एक अकिंचन की’ हाल ही में प्रकाशित हुई है। भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के साथ आलेखित ग्रंथ ‘सुखी परिवार समृद्ध राष्ट्र’ से भी पाठक लाभान्वित हुए। आपकी प्रवचनमाला ‘महाप्रज्ञ ने कहा’ 39 खण्डों में प्रकाशित हो चुकी है। ‘महावीर का अर्थशास्त्र’ पुस्तक आपके समसामयिक चिंतन का प्रमाण प्रस्तुत करती है।
आपके पचासों ग्रंथों का अंग्रेजी, उड़िया, तमिल, गुजराती, बांग्ला, मराठी, रशियन आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
आपकी कविताओं के भी अनेक संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें गीत, कविता, क्षणिका तथा अन्य तमाम काव्य विधाओं की रचनाएँ संकलित हैं। आपकी रचनाओं में बिम्बों और कथ्यों का ऐसा अनोखा सामंजस्य है जो किसी भी पाठक को मंत्रमुग्ध करने के लिए पर्याप्त है।
आपकी कविताओं में सूक्तियों का एक विपुल भण्डार दिखाई देता है। आपके रचनाकर्म का बहुत-सा हिस्सा अभी अप्रकाशित है, हम आशा करते हो कि आपका समग्र साहित्य शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशन प्रक्रिया से गुज़रकर हमारे ज्ञानक्षेत्र तथा दृष्टिकोण का परिमार्जन करेगा!