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मानुष हौं तो वही रसखान

मानुष हौं तो वही रसखान, बसौं संग गोकुल गाँव के ग्वारन
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मँझारन
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरि छत्र पुरन्दर धारन
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिन्दि कूल कदम्ब की डारन

© Raskhan : रसखान