Tag Archives: Vishnu Prabhakar Poems

इतिहास

आदमी मर गया कभी का
पीढ़ियाँ ज़िन्दा हैं
सूरज बुझ जाएगा एक दिन
पर आकाश अमर है
सूरज के बिना
वह आकाश कैसा होगा!

Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर

 

न्याय

न्याय मिलता नहीं है
विवेक से
सत्य और असत्य के।
मिलता नहीं है वह दुरन्त
मानवीय भावना में
साक्षी-
केवल साक्षी है आधार
उसके आस्तित्व का
और बाज़ार पटे पड़े हैं
असंख्य अनाहूत साक्षियों से।
कितना सुलभ है न्याय
महंगाई के इस युग में।

 

Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर

 

प्रेम क्या है

प्रेम क्या है
रतिक्रिया-
अथवा आत्मरति
महत्वकांक्षा
घृणा
या व्यापार मानस मंथन का
अथवा पाना स्वयं को दूसरे में
सुनो-सुनो
मैं भुजा उठाकर कहता हूँ
सुनो, प्रेम है
लघुत्तम समापवर्त्य
इन सबका

© Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर

 

अकविता

ह-से-मुँह मिलाकर
बोले वह
बुर्र बुर्र बुर्र
कानाबाती कुर्र कुर्र कुर्र
टीली-लीली झर्र-झर्र-झर्र
अरे रे रे
दुर्र दुर्र दुर्र

© Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर

 

भावुक प्रेम

 

भावुक प्रेम
नहीं…
हूँ.…
और एक सुबकी
तारे, पानी की बूँदें दो-चार
ये तत्त्व हैं उस बहुप्रशिंसित प्रेम के
जो उफनता है
और उफनता ही रहता है
किसी भावुक हृदय में
और भावुकता का नशा
मात्र शराब का
जो चढ़ता है उतरने को
और तोड़ देता है
तन को
मन को

© Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर