जिनके कारण रोया उपवन गंध सुमन से दूर हो गयी, उन्हें अपेक्षा है ,हम उनको महामिलन के गीत सुनाएं। जिनके आने भर से सारी मुस्कानों की हुयी विदाई जिनकी परछाईं से अक्सर घबरा जाती है शहनाई भरी सभा में जिनके द्वारा गीतों के स्वर हुए उपेक्षित, उन्हें अपेक्षा है, हम उनको उनके मन के गीत सुनाएं। जिनका हर इंगित शामिल है पांचाली के चीरहरण में लाक्षागृह, अज्ञातवास में विपदा के हर एक चरण में और जिन्होंने हमें महाभारत तक लाकर छोड़ दिया है, उन्हें अपेक्षा है ,हम उनको वृन्दावन के गीत सुनाएं। जिनके साथ एक पल जैसे कष्टों भरी सदी हो जाए जिन्हें देखने भर से केवल सूखी आँख नदी हो जाए पग पग पर मरुथल बोए हैं जिनके चरणों ने धरती पर, उन्हें अपेक्षा है ,हम उनको बस सावन के गीत सुनाएं। © Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल